उत्तराखंड चारधाम यात्रा: बाबा केदार के बाद भक्त करते हैं इस शिलाखण्ड के दर्शन
उत्तराखंड चारधाम यात्रा: बाबा केदार के बाद भक्त करते हैं इस शिलाखण्ड के दर्शन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा का तीसरा पड़ाव माने जाने वाले बाबा केदारनाथ के कपाट खुलते ही गुरुवार सुबह श्रद्धालुओं की भारी भीड़ यहां उमड़ने लगी है। चारों तरफ फैले बर्फ और ठंड के बावजूद बड़ी संख्या में यहां भक्त केदारनाथ के दर्शन के लिए मौजूद रहे। मंदिर के कपाट खुलते समय अखंड ज्योति के दर्शन का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व बताया गया है।
श्रीकेदारनाथ धाम के कपाट 6 महीने के लंबे इंतजार के बाद आज खुले हैं और अब भक्त आने वाले 6 माह तक दर्शन कर सकेंगे। बता दें कि तीर्थयात्री यमुना और गंगा के जल को यमुनोत्री और गंगोत्री से लाकर केदारनाथ का जलाभिषेक कर बाबा केदारनाथ को प्रसन्न करते हैं।
इस शिलाखण्ड के भी किए दर्शन
केदारनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां साक्षात शिव का वास है और साल के 6 महीने मनुष्य और शीत ऋतु के 6 महीने में देवतागण यहां शिवजी की पूजा करते हैं। हालांकि अब यहां आने वाले दर्शनार्थी ना सिर्फ बाबा को प्रसन्न करते हैं, बल्कि पूजा अर्चना के बाद मन्दिर के पीछे पड़े उस शिलाखण्ड को शीश झुकाना नहीं भूलते, जिसकी वजह से 2013 के प्रलयंकारी बहाव से मन्दिर की रक्षा हुई थी।
जब आई थी प्रलय
आपको बता दें कि वर्ष 2013 में केदारनाथ में भयंकार प्रलय आई थी, जिसके निशान अब भी यहां बाढ़ से बहे भवन, बिखरे मलबे में देखने को मिलते हैं। इस त्रासदी में पानी के साथ बहकर आया यह शिलाखण्ड मन्दिर के ठीक पीछे आकर रुक गया था और इस शिलाखण्ड की वजह से पीछे से आने वाला बहाव दो भागों में विभक्त होकर मन्दिर के आस पास से निकल गया। जिसके चलते मन्दिर को कोई क्षति नहीं पंहुची। लोग इसी शिलाखण्ड के दर्शन करते हैं और शीश भी झुकाते हैं।
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि भूरे रंग के विशालकाय पत्थरों से निर्मित कत्यूरी शैली के इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के राजा जन्मेजय ने कराया था। कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और मंदिर को पुनः प्रतिष्ठित करवाया। जन्मेजय राजा परीक्षित के बेटे और अभिमन्यु के पौत्र थे। शंकराचार्य को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। मान्यता है कि आठवीं सदी में चारों दिशाओं में चार धाम स्थापित करने के बाद 32 वर्ष की आयु में शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम में ही समाधि ली थी।