Jitiya Vrat: जानिए क्यों रखा जाता है ये व्रत? क्या है इसका महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
- यह व्रत जीवित्पुत्रिका या जिउतिया नाम से भी जाना जाता है
- माताएं अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं
- इस व्रत के दौरान तीन दिन तक उपवास किया जाता है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत (Jitiya Vrat) रखा जाता है, जिसे जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika) या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। खास तौर पर बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश में इस व्रत का अधिक महत्व माना जाता है। यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतानों के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस दौरान तीन दिन तक उपवास किया जाता है। इसलिए यह व्रत काफी कठिन भी माना जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि...
तिथि कब से कब तक
अष्टमी तिथि आरंभ: 24 सितंबर 2024 की दोपहर 12 बजकर 38 बजे से
अष्टमी तिथि समापन: 25 सितंबर 2024 की दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक
उदया तिथि के आधार पर इस साल जितिया व्रत 25 सितंबर 2024, बुधवार के दिन रखा जाएगा।
इस विधि से करें पूजा
- अष्टमी तिथि पर सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हों और साफ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद भगवान सूर्य को जल देकर जितिया व्रत एवं पूजन का संकल्प करें।
- शाम के समय प्रदोष काल में कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाएं और इसे जलपात्र में स्थापित करें।
- इसके बाद लाल और पीली रुई अर्पित करें।
- जीमूतवाहन को धूप, दीप, बांस के पत्ते, अक्षत्, फूल, माला, सरसों का तेल और खल्ली अर्पित करें।
- गाय के गोबर और मिट्टी से मादा सियार और मादा चील की मूर्ति बनाएं।
- इन्हें सिंदूर, खीरा और भींगे हुए केराव अर्पित करें।
- चील और सियारिन को चूड़ा-दही भी अर्पित करें।
- इसके बाद चिल्हो-सियारों की कथा या गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन और पक्षीराज गरुड़ की कथा सुनें।
- पूजा के अंत में आरती करें।
महत्व
इस व्रत का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था और वह पांडवों के शिविर में घुस गया। जिसके बाद उसने वहां सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार दिया। असल में वह द्रोपदी की पांच संतानें थीं। इस घटना के बाद अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली थी। वहीं अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया था। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष, वास्तुशास्त्री) की सलाह जरूर लें।