ज्येष्ठ महीने का शुभ पर्व: बड़े मंगल के दिन की जाती है हनुमानजी की पूजा, जानिए कैसे करें विधि- विधान से पूजा -अर्चना?
- बुढ़वा मंगल कैसे मनाएं?
- प्रभु श्रीराम और भक्त हनुमान का हुआ था मिलन
- द्वापर युग में मिले थे भीम और हनुमान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बड़े मंगल के दिन हनुमानजी की विधि- विधान से पूजा- अर्चना करने का विशेष महत्व होता है। भक्त ज्येष्ठ माह में आने वाले सभी मंगलवार को बजरंगबली जी की उपासना करके उन्हें प्रसंन्न करते हैं। जयेष्ठ महीने में मनाए जाने वाले बड़े मंगल को बुढ़वा मंगल या बूढ़ा मंगल के नाम से भी जाना जाता है।
बुढ़वा मंगल बहुत शुभ पर्व है। माना जाता है कि ज्येष्ठ महीने के मंगलवार को हनुमानजी और भगवान श्री राम जी का मिलन हुआ था। इस साल ज्येष्ठ महीने में 4 मंगलवार पड़ रहे हैं। पहला बड़ा मंगल 28 मई को पड़ा, 4 जून को दूसरा बड़ा मंगल आया, अब 11 जून को तीसरा बड़ा मंगल मनाया जाएगा और आखिरी 18 जून को मनाया जाएगा।
बुढ़वा मंगल कैसे मनाएं?
ज्येष्ठ महीने में आने वाले बुढ़वा मंगल को भक्त कई समय से एक पर्व की तरह मनाते हैं। हनुमानजी को प्रसंन्न करने के लिए मंगलवार को व्रत रखा जाता है। इस दिन बालाजी के सामने चमेली का दिया जलाएं और हनुमानजी को बूंदी का भोग लगाएं। भगवान को रोली चंदन का तिलक लगाने से पहले स्नान कर लें। इसी के साथ, बूढ़े मंगल के दिन हनुमान चालिसा और बजरंग बाण का पाठ करना अच्छा माना जाता है। हनुमानजी को लाल रंग बड़ा प्रिय है, इसलिए बड़े मंगल के दिन लाल कपड़े का दान कर के प्रभु की अपार कृपा पाई जा सकती है। इस शुभ पर्व पर आप भगवान को 5, 11, 21, 51 या फिर 101 चोला चढ़ाकर खुश कर सकते हैं।
प्रभु श्रीराम और भक्त हनुमान का मिलन
रामायण ग्रंथ और महाकाव्य रामचरित मानस के अनुसार मंगलवार को माता सीता के हरण के बाद रामजी और लक्ष्मण भक्त हनुमान से मिले। दोनों भटकते- भटकते ऋषिमूक्य पर्वत पर पहुंचे जहां उनकी मुलाकात पवन पुत्र हनुमान से हुई। उस समय ज्येष्ठ का ही महीना था। भगवान और भक्त के इस मिलन को लोग पर्व की तरह मनाते हैं।
जानिए द्वापर युग की कथा
बुढ़वा मंगल से जुड़ी एक बड़ी ही सुंदर घटना द्वापर युग में घटी थी। द्वापरयुग वही है जब महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। भीम द्रौपदी के कहने पर कमल का फूल लाने कमल सरोवर गए, जो गंधमादन पर्वत पर था। वह अचानक हनुमानजी को देख कर रुक जाते हैं। क्योंकि रास्ते में हनुमानजी अपनी लंबी सी पूंछ पैला कर लेटे हुए थे। भीम उनकी पूंछ के ऊपर से नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने हनुमानजी से अपनी पूंछ हटाने को कहा। भीम की बात सुनकर वह हंसने लगे और कहा कि तुम बहुत शक्तिशाली हो तो खुद ही मेरी पूंछ हटा कर चले जओ। हनुमानजी की बात सुनकर भीम ने तय कर लिया कि वह खुद पूंछ हटा कर जाएंगे। भीम ने एड़ी चोटी का जोर लगाया पर पूंछ हिलने का नाम नहीं ले रही थी। भीम की सारी कोशिश नाकाम हो गई। भीम को लगा कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। भीम ने माफी मांगकर हनुमानजी से आग्रह किया कि वह उनका रूप दिखाएं। तभी हनुमानजी अपने विराट रूप में आए और भीम को आशीर्वाद दिया। तभी से ज्येष्ठ महीने के हर मंगलवार को बुढ़वा, बड़ा और बूढ़ा मंगलवार का नाम पड़ा।