Devshayani Ekadashi 2024: इस दिन से शुरू हो जाता है चातुर्मास, जानिए देवशयनी एकादशी की पूजा विधि और मुहूर्त

  • विष्णु जी की पूजा से सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है
  • सभी व्रतों में देवशयनी एकादशी का व्रत उत्तम माना है
  • इस वर्ष देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को है

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-16 07:51 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) कहा जाता है। इसके अलावा इसे हरिशयनी एकादशी, पद्मनाभा तथा प्रबोधनी के नाम से भी जाना जाता है। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में बताए गए सभी व्रतों में देवशयनी एकादशी का व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी व्रत 17 जुलाई को पड़ रही है।

मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके सभी पापों का नाश होता है। साथ ही इस व्रत को रखने से अंत समय में आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही आरोग्य और धन-धान्य की भी प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं इस एकादशी की पूजा विधि और मुहूर्त...

तिथि और मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 16 जुलाई, मंगलवार रात 8 बजकर 33 मिनट से

एकादशी तिथि समापन: 17 जुलाई, बुधवार रात 9 बजकर 2 मिनट पर

व्रत का पारण समय: 18 जुलाई की सुबह 5 बजकर 35 मिनट से सुबह 8 बजकर 20 मिनट के बीच

पौराणिक महत्व

देवशयनी एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना करने से सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु उस लोक के लिए गमन करते हैं और इसके बाद चार माह के अंतराल के बाद सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर विष्णु भगवान का शयन समाप्त होता है तथा इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शैय्या पर शयन करते हैं इसलिए इन माह अवधियों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता।

पूजा विधि

- देवशयनी एकादशी व्रत का आरंभ दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाता है।

- दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

- अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें।

- भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना करें।

- पंचामृत से स्नान करवाकर भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी करें।

- भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मन्त्र द्वारा स्तुति करना चाहिए।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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