देवउठनी एकादशी: आज है देव उठनी एकादशी? जानें इस पर्व की मान्यता और शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी से पूरे 6 माह के लिए देव जागते हैं
डिजिटल डेस्क। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु सहित सभी देव जागते हैं और सृष्टि का कार्य-भार देखते हैं। इस वर्ष यह एकादशी 23 नवंबर गुरुवार को मनाई जा रही है। इस दिन तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। भक्त पूरे विधि विधान से पूजा करने के साथ क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों के आरंभ करने की प्रार्थना करते हैं।
पौराणिक अथा के अनुसार भगवान श्रीहरि ने असुरराज बलि को वचन दिया था कि वे देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में रहेंगे तभी से भगवाल विष्णु हार साल चार महीने के लिए पाताल लोक जाकर योग निद्रा में लीन हो जाते हैं और देवउठनी एकादशी को भगवान पाताल लोक को छोड़कर वापस अपने वैकुंठ धाम आ जाते हैं। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें...
शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भः 22 नवंबर को देर रात 11 बजकर 03 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 23 नवंबर को 09 बजकर 01 मिनट तक
पारण का समय: 24 नवंबर को सुबह 06 बजकर 51 मिनट से लेकर 08 बजकर 57 मिनट के मध्य
गन्नों के मंडप
देवउठनी ग्यारस पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाती है। मंडप में शालिग्राम की प्रतिमा एवं तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाता है। मंदिरों के व घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर,चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित किया जाता है।
मण्डप की परिक्रमा
इसके बाद मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाती है। तुलसी को माता कहा जाता है क्योंकि तुलसी पत्र चरणामृत के साथ ग्रहण करने से अनेक रोग दूर होते हैं। शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है लेकिन उनके पत्र मंजरी पूरे वर्ष भर देवपूजन में प्रयोग होते हैं। तुलसी दल अकाल मृत्यु से भी बचाता है।
महत्व
वैष्णवजन के लिए तुलसी जी का विशेष महत्व होता है। वह तुलसी की माला धारण करते हैं और जपते हैं। तुलसी पत्र के बिना भोजन नहीं करतें हैं। कहा जाता है कि तुलसी पत्र डालकर जल या दूध चरणामृत बन जाता है तथा भोजन भी प्रसाद बन जाता है। इसीलिए तुलसी विवाह का महोत्सव वैष्णवों को परम संतोष देता है। साथ ही प्रत्येक घर में छह महीने तक हुई तुलसी पूजा का इस दिन तुलसी विवाह के रूप में होता है। तुलसी के गमले को गोमय एवं गेरू से लीप कर उसके पास पूजन की चौकी पूरित की जाती है।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर अपने घर और मंदिर को साफ करें। उसके बाद गन्ने कि झोपड़ी बनाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और माता तुलसी को भी स्थापित कर दीपक जलाएं, पीले चंदन और हल्दी कुमकुम से तिलक लगाएं और उन्हें विशेष प्रसाद भी चढ़ाएं। व्रत कथा पढ़ें और आरती के साथ पूजा का समापन करें।
पंचांग पूजन
गणेश पूजा के साथ पंचांग पूजन के बाद तुलसी विवाह की सारी विधि होती है। श्रद्धालु मंगल वाद्ययंत्रों के साथ उन्हें पालकी में बिठाकर मंदिर परिसर एवं घर-आंगन में घूमाकर पूर्व स्थान से दूसरे स्थान पर रख देते हैं। बधाई के गीत गाए जाते हैं और सगुन में मिष्ठान्न, प्रसाद, फल एवं दक्षिणा दी जाती है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। गोधूलि बेला में तुलसी विवाह करने का पुण्य लिया जाता है। दीप मालिकाओं से घरों को प्रकाशित किया जाता है और बच्चे आतिशबाजी चलाकर खुशियां मनाते हैं।
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