छोटी दिवाली 2023: जानें इस दिन क्यों कहा जाता है नरक चतुर्दशी ? कैसे करें पूजा

इस दिन होती है मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-11-11 06:10 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। दीपावली से एक दिन पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है। इसे नरक चतुर्दशी, काली चतुर्दशी और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 11 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं, कहा जाता है इस दिन से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सुबह अभ्‍यंग स्‍नान करने के बाद शाम को मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है।

नरक चतुर्दशी पर यम के लिए दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और उस परिवार पर से अकाल मृत्यु का संकट खत्म होता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस बार नरक चतुर्दशी की तिथि 11 नवंबर से 12 नवंबर तक है। ऐसे में इसे दोनों दिन मनाया जा सकता है। आइण् जानते हैं इस पूजा का महत्व, विधि और मुहूर्त...

तिथि और स्‍नान का शुभ मुहूर्त

तिथि प्रारंभ:11 नवंबर, शनिवार दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से

तिथि समाप्‍त: 12 नवंबर रविवार, दोपहर 2 बजकर 44 मिनट तक

अभ्‍यंग स्‍नान का मुहूर्त: 12 नवंबर, रविवार सुबह 5 बजकर 28 मिनट से 6 बजकर 41 मिनट तक

क्यों कहा गया इस दिन को नरक चतुर्दशी

पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। ऐसा कहा जाता है कि, नरकासुर ने अपने बंदी गृह में 16 हजार से ज्यादा महिलाओं को कैद किया था। इन महिलाओं को भगवान कृष्ण ने आजाद कराया था, तब से छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के तौर पर मनाया जाता है।

रखें ये सावधानी

इस दिन घर के सबसे बड़े सदस्‍य को यम के नाम का एक बड़ा दीया जलाना चाहिए। इसके बाद इस दीये को पूरे घर में घुमाएं और फिर अब घर से बाहर जाकर दूर इस दीये को रख आएं। घर के दूसरे सदस्‍य घर के अंदर ही रहें और इस दीपक को न देखें।

पूजा विधि

- इस दिन तिल का तेल लगा कर स्नान करने की परंपरा है, इसी कारण इसे रूप चौदस भी कहा गया है।

- इस दिन हनुमान जी, भगवान कृष्ण, यमराज और मां काली की पूजा की जाती है।

- पूजा के दौरान पंचदेवों, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु और सूर्यदेव की स्थापना की जाती है।

- पंचदेवों का गंगा जल से स्नान करा कर, रोली या चंदन से तिलक किया जाता है।

- सभी देवों को जनेऊ, कलावा, वस्त्र और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।

- इसके बाद सभी देवों के मंत्रों और स्तुति का पाठ किया जाता है।

- पूजा का समापन आरती के बाद करें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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