छठ पूजा का तीसरा दिन: डूबते सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य, इस विधि से करें पूजा विधि
महिलाएं पानी के अंदर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को छठ पूजा का विशेष विधान होता है। इस पूजा का मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश से आरम्भ हुआ है, जो अब देश-विदेश तक फैल चुका है। चार दिनों का छठ पर्व सबसे कठिन व्रत होता है। इसलिए इसे छठ महापर्व कहा जाता है। इस पर्व के दो दिन निकल चुके हैं और अब रविवार को तीसरा दिन है। इस पर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के लिए होता है, जिसमें व्रत करने वाली महिलाएं पानी के अंदर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत जिसका और तीसरा विशेष दिन है। इस दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। महिलाएं दूध और पानी से सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। इस दिन जैसे ही सूर्यास्त होता है परिवार के सभी लोग किसी पवित्र नदी, तालाब या घाट पर एकत्रित होकर एक साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। आइए जानते हैं छठ पर्व के तीसरे दिन के बारे में...
तीसरे दिन ऐसे होती है पूजा
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल पष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन प्रसाद को रुप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं। इसके अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते है जिसे लडुआ भी कहा जाता है। इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। संध्या समय पूरी तैयारी के साथ बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रत करने वाले के साथ परिवार और पड़ोसी सूर्य देव को अर्घ्य देने अपने-अपने नगर या गावँ के नदी या तालाब के किनारे इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को दूध और अर्घ्य का जल दिया जाता है। इसके बाद छठ मैया की भरे सूप से पूजा की जाती है और साडी रात में छठी माता के गीत गाये जाते हैं।
क्या है इस दिन का महत्व?
भारत में सूर्य देव को प्रतक्ष ईश्वर मानकर उनकी पूजा-उपासना करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से चली आ रही है। सूर्य देव और उनकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तार से की गई है। रामायण में माता सीता के साथ छठ पूजा किए जाने का वर्णन मिलता है।वहीं महाभारत में भी इससे जुडी कई कथाएं आती हैं| मध्यकाल तक आते आते छठ पूजा व्यवस्थित से एक बहुत ही प्रतिष्ठित पर्व के रूप में प्रतिष्ठा पा चुका था, जो आज देश-विदेश तक में पूजा जा रहा है|
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