Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि में चौथे दिन करें मां कुष्मांडा की उपासना, जानें कैसे पड़ा मां का नाम कुष्मांडा
- देवी की उपासना शांत मन से करना चाहिए
- मां कुष्मांडा को पीले फल, फूल, वस्त्र प्रिय हैं
- पूजा की पूजा से सूर्य से उत्पन्न दोष दूर होते हैं
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मां दुर्गा का चौथा भव्य स्वरूप मां कुष्मांडा (Maa Kushmanda) हैं। चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन देवी के इस स्वरूप की उपासना की जाती है। इस वर्ष देवी कुष्मांडा की पूजा 12 अप्रैल 2024, शुक्रवार को की जा रही है। पंडित जी के अनुसार, देवी की उपासना शांत मन से और मधुर ध्वनि के साथ करनी चाहिए। मां कुष्मांडा को पीले फल, फूल, वस्त्र, मिठाई और मालपुआ सबसे प्रिय हैं।
शास्त्रों के अनुसार कुष्मांडा की पूजा से ग्रहों के राजा सूर्य से उत्पन्न दोष दूर होते हैं। मां कुष्मांडा की पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ ही व्यापार, दांपत्य, धन और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं कैसे पड़ा मां का नाम कुष्मांडा और कैसे करें मां की आराधना?
कैसा है मां का स्वरूप
कुष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। मां के पास इन सभी चीजों के अलावा हाथ में अमृत कलश भी है। इनका वाहन सिंह है।
कैसे पड़ा देवी के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा ?
भगवती पुराण के अनुसार, एक समय जब संसार में चारों ओर अंधियारा छाया था, तब मां कुष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसलिए इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। वह सूरज के घेरे में रहती हैं और उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है कि वह सूरज की तपिश को सह सकती हैं। कुष्मांडा देवी को सृष्टि की आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा गया है।
कैसे करें मां कूष्मांडा की पूजा?
सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर हरे या संतरी रंग के वस्त्र धारण करें
पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें।
मां कूष्मांडा को अपनी उम्र की संख्या के अनुसार हरी इलाइची अर्पित करें।
हर इलाइची अर्पित करने के साथ "ॐ बुं बुधाय नमः" का जाप करें।
इसके बाद सभी इलायची को एकत्रित करके हरे कपड़े में बांधकर नवरात्रि तक अपने पास रखें।
आज के दिन माता को मालपुए बनाकर विशेष भोग लगाएं।
इस मंत्र का करें जाप
मंत्र: या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
या
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
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