सतना: सेप्टिक टैंक के आउटलेट से हाउस सर्विस कनेक्शन की आड़ में बड़ा खेल

  • डिजायन में फाल्ट से वास्तुशिल्पी और नगर निगम के इंजीनियर इंचार्ज की भूमिका पर उठे सवाल
  • हाउस सर्विस कनेक्शन के नाम पर सीवर लाइन को सेप्टिक टैक के आउटलेट से जोड़ा जा रहा है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-30 13:15 GMT

डिजिटल डेस्क,सतना। सीवरेज प्रोजेक्ट यहां दगाबाजी का शिकार हो चुका है? तकनीकी विशेषज्ञों की मानें तो यह ऐसी धोखेबाजी है, जिसने 42.66 करोड़ के पैकेज-वन के सीवर प्लान के औचित्य और इसकी पब्लिक यूटिलिटी की रही-सही गुंजाइश भी खत्म कर दी है।

ऐसी स्थिति में भविष्य में इसके भीषण दुष्परिणाम तय हैं। झगड़े की जड़ में प्रोजेक्ट के डिजायन का टेक्निकल फाल्ट है। सच सामने आने के बाद कंसलटेंट कंपनी और नगर निगम के इंजीनियर की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं।

इन्हीं जानकारों के मुताबिक साल 2015 में नगर निगम की मानीटरिंग में केके स्पन के लिए भोपाल के वास्तुशिल्पी प्रोजेक्ट एंड कंसलटेंट ने डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाया था। ड्राइंग-डिजायन तैयार करने में गफलत तब हुई जब सीवर लाइन को सेप्टिक टैंक के इनलेट से जोड़े जाने के विपरीत सीवर लाइन को सेप्टिक टैंक के आउटलेट से जोडऩे की डिजायन एप्रूव करा ली गई।

ऐसे हुआ खुलासा

केके स्पन बीच में ही काम छोड़ कर भाग गई। जुलाई 2022 में पैकेज-वन के लिए नए प्लेयर के रुप में पीसी स्नेहिल कंस्ट्रक्शन कंपनी मैदान में आई। निर्माण कंपनी तो बदल गई लेकिन आरोप है कि नगरनिगम के इंजीनियर इंचार्ज नागेंद्र सिंह ने त्रुटिपूर्ण ड्राइंग-डिजायन में भूल सुधार की जहमत नहीं उठाई।

हाल ही में इस बड़े खेल का खुलासा तब हुआ जब धवारी और महदेवा इलाके के केशवनगर में पीसी स्नेहिल ने हाउस सर्विस कनेक्शन (एसएचसी) देने शुरु किए। आरोप हैं कि हाउस सर्विस कनेक्शन के नाम पर सीवर लाइन को सेप्टिक टैक के आउटलेट से जोड़ा जा रहा है।

जबकि सेप्टिक टैंक के इनलेट को सीवर लाइन से जोड़ा जाना चाहिए। मगर, नगर निगम में अंधेरगर्दी का हाल यह है कि त्रुटिपूर्ण डिजायन के जवाब में जिम्मेदार अफसर मुंह चुरा रहे हैं।

अब क्या होगा

शहर के लिए नारकीय होंगे दुष्परिणाम बाहर नहीं जाएगा स्लज, सिर्फ ओवर फ्लो बहेगा

असल में सीवरेज प्रोजेक्ट की मूल मंशा शहर के भवनों को सेप्टिक टैंक से मुक्त करना है। इसके लिए यह जरुरी है कि टायलेट के स्लज (सॉलिड वेस्ट/ठोस अपशिष्ट) को सेप्टिक टैंक में जाने से रोका जाए और सेप्टिक टैंक के ओवर फ्लो के साथ स्लज (गंदा मलबा) को सीवर लाइन तक पहुंचाया जाए।

टायलेट के गंदे मलबे को सेप्टिक टैंक में जाने से तभी रोका जा सकता है जब इस टैंक के इनलेट से सीवर लाइन को जोड़ा जाए। सेप्टिक टैंक के आउटलेट को सीवर लाइन से जोडऩे की मौजूदा स्थिति में स्लज टैंक में ही रह जाएगा और सिर्फ सेप्टिक टैंक का ओवर फ्लो (गंदा पानी) ही सीवर लाइन तक पहुंच पाएगा। साफ है कि इस हालत में सीवरेज प्रोजेक्ट का मूल उदेश्य कभी भी पूरा नहीं हो पाएगा।

आखिर,ऐसा क्यो : इस गेम को ऐसे समझें

9 साल में पेयजल पर खर्च किए 195 करोड़ लेकिन सीवर के लिए पानी नहीं

सीवर लाइन को सेप्टिक टैंक के आउटलेट से जोड़ कर स्लज की जगह सिर्फ ओवर फ्लो बहाने की साजिश की जड़ में शहर का भीषण जल संकट है। जानकार बताते हैं कि सीवर लाइनें पूरे समय दो-तिहाई पानी से भरी रहनी चाहिए।

ताकि स्लज को फ्लश किया जा सके। मगर, हालत यह है कि 9 साल में जल प्रबंध के मद में 195 करोड़ रुपए की भारी भरकम रकम खर्च करने के बाद भी नगर निगम शहर को एक टाइम सिर्फ एक घंटे ही जल की आपूर्ति कर पा रहा है।

जब निगम पीने का पानी तक नहीं उपलब्ध करा पा रहा है, तब ऐसे में सीवर लाइनों में 24 घंटे पानी की उपलब्धता सिर्फ दिवास्वप्न है। इन्हीं जानकारों का कहना है कि जल संकट की इस दूरदृष्टि के चलते नगर निगम के इंजीनियर इंचार्ज ने सीवर लाइन को सेप्टिक टैंक के आउटलेट से जोडऩे के डिजायन पर आपत्ति नहीं उठाई।

अगर टैंक के इनलेट से सीवर जुड़ता तो स्लज भी बहता और इसे बहाने के लिए लाइनों में दो-तिहाई जल की जरुरत होती।

फैक्ट फाइल

(जलापूर्ति के लिए किस मद में कितना खर्च)

जलावर्धन : 110 करोड़

अमृत मिशन: 41 करोड़

स्मार्ट सिटी : 25 करोड़

नगर निगम : 19 करोड़

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