पन्ना: कड़ाके की ठण्ड में लकड़ी बेंचकर जीवन यापन कर रहे आदिवासी

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-02 08:20 GMT

डिजिटल डेस्क, पन्ना। यूं तो आदिवासियों के नाम पर अनेक संगठन उनके हित में कार्य करते हैं और सरकारें भी उनके हितार्थ अनेक योजनाओं के संचालन के दावे करती हैं लेकिन पन्ना शहर में जब सुबह-सुबह आदिवासी महिलाओं सहित उनके बच्चे व छोटी बच्चियां अपनी उम्र के हिसाब से दोगुना वजन का लकडी का गठ्ठा रखकर पन्ना के समीप ग्राम जनवार, खजुरी कुडार व मनौर से पन्ना पहुंचती है तो यह तस्वीर अपने आप इन सब दावों की पोल खोल देती है। प्रदेश सरकार द्वारा अनेक योजनाए संचालित की जा रही है तथा उक्त योजनाओं के नाम पर भारी भरकम बजट दिया जाता है। उक्त बजट की राशि गरीब आदिवासियों को उपलब्ध नहीें हो पाती तथा आदिवासी वर्ग आज भी रोजी रोटी के लिए मोंहताज है। लकडी बेंचकर अपना जीवन यापन कर रहे है।

पन्ना जिले की स्थिति और ही बदतर है जिले में समाजिक न्याय विभाग, श्रम विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, अनुसूचित जाति विभाग द्वारा योजनाए चलाई जा रही है लेकिन उक्त सभी योजनाए कागजों तक ही सीमित है। वर्तमान समय मे कडाके की भारी ठण्ंड के चलते छोटे-छोटे बच्चे महिलाएं सिर पर लकडी का गठ्ठा लेकर जिला मुख्यालय से ५ से 10 किलोमीटर दूर से आते हैं। जब उनकी लकडी १०० से १५० रूपये में बेचीं जाती है तब वह अपना राशन पानी ले पाते हंै। वर्तमान समय में मंहगाई के चलते गरीबों की रोजी रोटी चलना बहुत ही मुश्किल की बात है।

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