मजदूर हैं भिखारी नहीं, ये कहते हुए महिला ने पल्लू से ढंक लिया चेहरा और बच्चे को गोद उठा चली गई
मजदूर हैं भिखारी नहीं, ये कहते हुए महिला ने पल्लू से ढंक लिया चेहरा और बच्चे को गोद उठा चली गई
डिजिटल डेस्क, नागपुर। मजदूरों के पलायन का दर्द। दिल्ली की खबरों ने मजदूरों के जो हाल बयां किए है वह निश्चित ही देशवासियों को दुखी व भावुक कर देनेवाले हैं। सोशल मीडिया पर तंज कसा जा रहा है-अपने ही देश में यह कैसा बेचारा भारत है,जो हजार डेढ़ हजार किलोमीटर तक चलने व रेंगने पर मजबूर है। श्रमिकों को आश्रय के मामले में महाराष्ट्र और नागपुर भी पीछे नहीं रहा है। लिहाजा यहां भी कम ही सही पर मजदूरों का पलायन जारी है। हमने मजदूरों के दर्द को करीब से जानने की कोशिश की। शहर की चारों दिशाओं में भ्रमण किया। मजदूर मिले। दर्द भी दिखा। लेकिन बयां कुछ और होता रहा।
टैक्सियों का काफिला
काटोल रोड पर ही रविवार की रात को 10 बजे टैक्सियों का काफिला नागपुर की ओर बढ़ता दिखता है। नंबर प्लेट से साफ होता है कि वे टैक्सियां यहां की नहीं है। पूछने पर एक टैक्सी चालक कहता है-मुंबई से आ रहे हैं। जमशेदपुर जा रहे हैं। झारखंड,अपना वतन। नाम नहीं बताते हुए टैक्सी चालक यह भी कहता है-अब सबके सफर ठहर गए है तो हम शहर में क्या करेंगे। गांव का सफर ही हमारे लिए एकमात्र रास्ता है।
और चेहरा ढंक लिया
एक महिला मजदूर सड़क किनारे मासूम बच्चे को पानी पिला रही थी। चर्चा के दौरान तस्वीर लेने लगे तो उसने साड़ी के पल्लू से चेहरा ढंक लिया। वह कहती है- हमें बेचारे गरीब मत लिखना। हम मेहनती लोग हैं। हम से किसी के चेहरे पर बेचारा नहीं लिखा है।
पुरुष मजदूर चर्चा करने लगा तो कमला बोल पड़ी-यहां रहे भी तो किसके भरोसे। लंबे कर्फ्यू की खबर ने हमारी नींद छीन ली है। नींद सौतन सी हो गई थी। इसलिए रात का पहला पहर बीतते ही घर जाने के लिए निकल पड़े थे। शुक्रवार को बूटीबोरी से निकले उस समय रात के 3 बजे थे। मजदूर मोहन बताता है- लोग मदद की बात तो करते हैं पर हम जानते हैं परेशानी बढ़ेगी तो कोई हमारी ओर मुढ़कर भी नहीं देखेगा इसलिए यह रस्ता पकड़ा। मोहन बताता है,उनके जत्थे में 26 सदस्य हैं। गोद में मासूम बच्चें को लेकर चल रही महिला की ओर देखते हुए मोहन कहता है- केवल पेट की ही चिंता नहीं है। इन दूधमुंहों की तबियत बिगड़ जाएं तो मदद के लिए किसके पास हाथ फैलाएंगे। मोहन यह भी बताता है कि बूटीबोरी में सारे मजदूर इमारत निर्माय कार्य कर रहे थे। ठेकेदार ने कह दिख है कि अपनी व्यवस्था देख लो। रात में घर के लिए निकले । दिन भर में नागपुर भी पार नहीं कर पाए। शाम हो गई तो एक पुलिस वाले ने स्कूल परिसर में रुकने का इंतजाम कराया। खाने को बिस्किट दी। नाश्ता दिलाया। बाबू, छजन, निर्दोषी व अन्य मजदूर मुस्कुराते हुए सड़क किनारे ही बैठ गए। पहले तो वे सभी बताते हैं कि उन्हें इंदौर जाना है। फिर यह भी कहते हैं कि इंदौर से भी 150 किलोमीटर दूर जाना है। कोई रायगढ़ तो कोई धार जिले का नाम लेता है। वे यह भी बताते हैं कि उन्हें घर पहुंचने तक 8 से 10 दिन लग सकते हैँ।
मजदूर राजवंती उइके कहती है-हम गरीब है। भिखारी नहीं। गांव में अच्छी खेती बाड़ी है। हमारे खेतों में काम करने के लिए दूसरे मजदूरों को बुलाना पड़ता है। दो साल से खेती साथ नहीं दे रही इसलिए कुछ समय के लिए हम यहां रोजी रोटी के लिए आए। टीवी से पता चला दो तीन महीने काम नहीं खुलेगा इसलिए घर जा रहे हैं। राजवंती यह भी कहती है-मदद के तौर पर केला बिस्किट लेकर आनेवालों से परेशान हैं। आप अगर पेपरवाले हो तो उनको हमारे साथ फोटो खिंचवाने से रोको। एक दिन पहले काटोल रोड पर फेटरी के पास मजदूरों का जत्था मिला। उनके साथ दूधमुंहे बच्चे से लेकर बालक, बालिकाएं व किशोरियां थी। सिर पर भारी भरकम पोटली व बोरी लेकर चल रहे थे। कमला नरवरिया ने पहले तो चर्चा से यह कहकर इनकार कर दिया कि हमारे घर के आदमी से बात करो। हम क्या बताएं।
दया, हमदर्दी, बेचारगी जैसे शब्द किनारे लगते गए। सामने था तो केवल स्वाभिमान, जवाबदारी का एहसास और संकट के प्रति सजगता। रविवार की सुबह । 9 बजे थे। जरीपटका रिंग रोड पर मैजिक फूड रेस्टारंट के सामने 15 मजदूर खड़े थे। इधर उधर देख रहे थे। शायद कुछ मदद चाह रहे थे। मजदूरों में महिलाएं व उनके बच्चें भी थे। मजदूरों का मुखिया सा दिखने वाले एक शख्स से चर्चा की। सरकार ने राहत की घोषणा की है। अनाज तेल घर बैठे मुफ्त में मिलनेवाले हैं। सरकार ने तो यह भी कह दिया है कि मजदूर जहां है वहीं रहें। कैंप लगाकर उनकी मदद की जाएगी। उनके लिए रहने खाने की व्यवस्था में कमी नहीं होगी। फिर भी गांव जाने की इतनी बेताबी क्यों? सवाल के जवाब में वह शख्स तपाक से बोलता है- हम मजदूर हैं। भिखारी नहीं। हम हाथ नहीं फैलाते हैं। यही सब करते तो शहर में क्यों आते? शख्स ने अपना नाम रामखिलावन साहू निवासी बिछुआ जिला मंडला मध्यप्रदेश बताया। रामखिलावन बताता है कि दो माह पहले फ्रेंडस कालोनी के एक ठेकेदार ने उन्हें गांव से यहां लाया था। कर्फ्यू लगने के बाद न तो ठेकेदार का पता है न ही उसका फोन रिसीव होता है।