सुसाइड नोट को किया खारिज, पुत्र की आत्महत्या के लिए पिता जिम्मेदार नहीं : हाईकोर्ट
सुसाइड नोट को किया खारिज, पुत्र की आत्महत्या के लिए पिता जिम्मेदार नहीं : हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने एक फैसले में 16 वर्षीय किशोर की आत्महत्या के लिए उसके पिता को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया है। महज इसलिए कि बेटे ने पिता को अपनी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लिखा है। पिता को बेटे की आत्महत्या का जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। इस निरीक्षण के साथ हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें निचली अदालत ने पिता को जिम्मेदार मान कर 10 साल की जेल और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
निचली अदालत ने सजा दी थी
हाईकोर्ट से बरी हुए पिता का नाम रामराव किशन राठौड़ (45) निवासी, वाशिम है। पुलिस में दर्ज मामले के अनुसार याचिकाकर्ता के 16 वर्षीय बेटे पवन ने 24 अक्टूबर 2012 को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में बेटे ने पिता की प्रताड़ना को अपनी आत्महत्या का मुख्य कारण बताया था। पवन के मामा ने पवन के पिता के खिलाफ पुलिस में शिकायत दी थी, जिसके आधार पर वाशिम सत्र न्यायालय ने पिता को बेटे की आत्महत्या का जिम्मेदार मान कर सजा सुनाई थी। पिता ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
ऐसा था घटनाक्रम
सुनवाई के दौरान कोर्ट में कई तथ्य सामने आए। घटना के दिन दशहरा था। पवन अपने एक मित्र के साथ पूजन के लिए आम के पत्ते और फूल लेने गया। उस दिन पवन ने एटीएम से 12 हजार रुपए भी निकाले। 11 हजार रुपए घर पर दिए और 1 हजार खुद की जेब खर्च के लिए रख लिया। बाद मंे पवन अपनी बाइक से एक मित्र के साथ फिल्म देखने गया। लौट कर उसने अपने लिए नए कपड़े खरीदे। शाम करीब 6.30 बजे पवन घर लौटा और फिर उसने फांसी लगा ली।
अवसाद में रहता था
इस मामले में कोर्ट ने माना कि पवन की परवरिश में उसके पिता ने कोई कमी नहीं रखी। यहां तक कि उसकी कम उम्र के बावजूद उसे खर्च के लिए एक बड़ी रकम दी गई, लेकिन पवन की मां की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिसके कारण पवन भी अवसाद में रहता था। कोर्ट ने माना कि ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है। ऐसे में बेटे द्वारा उठाए गए दु:खद कदम के लिए पिता को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला रद्द करते हुए पिता काे मामले से बरी कर दिया। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड .संतोश चांदे ने पक्ष रखा।