हाईकोर्ट ने कहा- रात में शांति से सोना भी लोगों का मौलिक अधिकार

हाईकोर्ट ने कहा- रात में शांति से सोना भी लोगों का मौलिक अधिकार

Bhaskar Hindi
Update: 2018-06-29 14:18 GMT
हाईकोर्ट ने कहा- रात में शांति से सोना भी लोगों का मौलिक अधिकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि सरकार के इस तर्क को मान लिया जाए कि मेट्रो रेल के निर्माण कार्य में पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत आनेवाले ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े नियम लागू नहीं होता है, तो क्या सरकार संविधान के तहत नागरिकों को प्रदूषण मुक्त परिसर में रहने के अधिकार से वंचित कर देगी। अदालत ने कहा कि भले ध्वनि प्रदूषण के नियम लागू नहीं होते पर फिर भी संविधान के तहत मिला अधिकार यथावत रहेगा।

अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि लोगों को रात में शांति से सोना भी मौलिक अधिकार के दायरे में आता है। हाईकोर्ट ने सरकार व मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन को अगली सुनवाई के दौरान यह बताने को कहा है कि वह सुरक्षा के कौन से उपाय करेगी जिससे नागरिकों का यह मौलिक अधिकार सुरक्षित रहे। 
न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। याचिका में मांग की गई है कि कफपरेड इलाके में रात दस बजे के बाद भी मेट्रो का काम करने की इजाजत दी जाए।

राज्य सरकार की दलील से सहमत नहीं हाईकोर्ट

सुनवाई के दौरान राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि मेट्रो रेल के निर्माण कार्य में ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियम लागू नहीं होते है। हम प्रयास करेंगे कि 18 महीने तक चलतेवाले निर्माण कार्य से होनेवाले शोर से लोगों को कम से कम परेशानी हो। इस पर खंडपीठ ने कहा कि यदि हम सरकार के तर्क को मान ले की ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियम मेट्रो के निर्माण कार्य पर लागू नहीं होते तो क्या वह नागरिकों को संविधान से मिले प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार से वंचित कर देगी। सरकार ने जो हलफनामा दायर किया है उसमे इस बात का कही जिक्र नहीं है कि वह मेट्रो के काम के कारण होनेवाले ध्वनि प्रदूषण को कैसे नियंत्रित करेगी। सरकार व मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर कौन से कदम उठाएगी इसकी जनकारी हमे दो जुलाई को प्रदान की जाए। 
 

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