अंतिम अशरे की ताक रातों में शब-ए-कद्र की तलाश, तीसरे अशरे की शुरुआत

त्यौहार   अंतिम अशरे की ताक रातों में शब-ए-कद्र की तलाश, तीसरे अशरे की शुरुआत

Bhaskar Hindi
Update: 2023-04-13 12:44 GMT
अंतिम अशरे की ताक रातों में शब-ए-कद्र की तलाश, तीसरे अशरे की शुरुआत

डिजिटल डेस्क, अकोला. रमजान उल मुबारक के दो अशरे पूरे हो चुके हैं। इस पवीत्र माह का तीसरा अशरा बुधवार बाद मगरीब से शुरू हो गया है। इस अशरे की ताक रातों में शब ए कद्र की तलाश की जाएगी। मुकद्दस रमजान महीने का तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात दिलाता है। रमजान का पूरा महीना रहमतों का महीना है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा है। इसी अशरे की ताक रातों में यानी 21, 23, 25, 27, 29 रमजान की रात पाक कुरान शरीफ नाजिल हुई थी। इन रातों में से जिस रात कुरान शरीफ नाजिल हुई, उसे शब-ए-कद्र की रात कहते हैं। इसलिए इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है। शब-ए-कद्र की रात को हजार महीने की रातों के बराबर बताया गया है, लेकिन वह कौन सी रात है, किस रात को कुरान शरीफ नाजिल हुआ, यह ठीक-ठीक मालूम नहीं है। इसलिए रोजेदार इन पांचों रात को जागकर खुदावंद करीम की इबादत करते हैं। 

हर मुसलमान के नजदीक रमज़ान की खास अहमियत होती है। इसमें दिनों के हिसाब से अकीदतमंद तीस या उनतीस दिनों तक रोजे रखते हैं। इस्लाम के मुताबिक, पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, इसमें पहला अशरा यानी माह के दस दिन, दूसरा और तीसरा अशरा भी इसी तरह दस दिन का होता है। रमजान का पहला अशरा रहमत का होता है। इस महीने के पहले 10 दिन में रोजा रखने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। इस्लामिक धर्म के अनुसार इन दिनों में अधिक से अधिक दान करना चाहिए और जरूरतमंद, गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए। रमजान का दूसरा अशरा माफी का होता है।

दूसरा अशरा 11वें रोजे से 20वें रोजे तक चलता है। इस्लामिक धर्म के अनुसार इन दिनों में इबादत कर, अल्लाह से किए गए गुनाओं की माफी मांगी जाती है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार दूसरे अशरे के दौरान जो भी व्यक्ति अपने गुनाहों के लिए मांफी मांगता है, उसे अल्लाह माफ करते हैं।रमजान का तीसरा यानी अंतिम अशरा जहन्नम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है। ये अशरा सबसे महत्वपूर्ण भी माना जाता है। 21वें रोजे से शुरू होकर 30वें रोजे तक ये अशरा चलता है। इस्लामिक धर्म के अनुसार तीसरे और अंतिम अशरे के दौरान अल्लाह से जहन्नम से बचने के लिए दुआ की जाती है।

कहा जाता है कि एक आदमी एतकाफ में बैठ जाए तो पूरी बस्ती का हक अदा हो जाता है। अल्लाह उस बस्ती पर आने वाले अजाबों को हटा लेते हैं। रमजान में नबी पाक ने पाबंदी के साथ एतकाफ किया था। इसलिए इस अमल का बहुत ऊंचा दर्जा है। अल्लाह, इंसान के सारे गुनाहों को माफ कर देते हैं और नेकियों में इजाफा होता है। एतकाफ में बैठने वाले को दो हज और उमरे का सवाब मिलता है। आखिर अशरे में घर परिवार, दुनियाई ऐशाेआराम को छोड़कर मस्जिदों में ठहरने को एतकाफ कहते हैं। नागरिक मस्जिदों में एतकाफ में अकीदतमंद बैठते हैं और पल-पल अल्लाह की इबादत में बीताते हैं।

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