27 साल बाद मिलीं स्कूल की दोस्त, खूब की ठिठोली
27 साल बाद मिलीं स्कूल की दोस्त, खूब की ठिठोली
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बारिश का मौसम, सुहानी हवा और दोस्तों का साथ। धरती पर इससे अच्छा मेल कदाचित ही होता है। ऐसे ही वातावरण में दोस्ती के धागे में बंधे या बंधने को आतुर जोड़ों की चहल-कदमी फुटाला तालाब परिसर की रौनक को बढ़ा देती है। लव बर्ड्स के मिलन के प्रमुख स्थलों में शामिल इस परिसर में शनिवार की आबोहवा भी कुछ खास थी। कुछ युवा फ्रेंडशिप डे की तैयारी का पूर्वाभ्यास करते प्रतीत हो रहे थे, लेकिन तालाब के पानी पर पैर से हिलोरें मारतीं और बलून उड़ातीं चार सहेलियों की खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी। किसी ने कहा है कि सहेलियां जब मिलती हैं, हंसी तितलियों सी उड़ती है। सहज ही लग रहा था कि किसी ने इन सहेलियों की खुशी पर ही तितलियों की उन्मुक्तता काे व्यक्त किया होगा। चालीस की उम्र पार कर चुकी उन सहेलियों की खुशियाें का साक्षात्कार लेना चाहा तो दोस्ती में मिलन की बेताबी का बड़ा ही रोचक किस्सा सामने आया।
कोरोनाकाल में जुड़तीं गईं एक-दूसरे से
संगीता ट्यूशन लेती हैं। शालिनी भी शिक्षिका हैं। सुनीता केक व बेकरी का व्यवसाय करती हैं। रोहिणी स्टेशनरी दुकान संचालक हैं। हंसी-ठिठोली के साथ शालिनी बताने लगीं-आज तो मानों हमारे लिए स्वर्ग ही धरती पर उतर आया है। भला हो मोबाइल फोन का जो यह दिन लौटाया। हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद सभी सहेलियां बिछड़ सी गई थीं। विवाह हुआ। घर बसा। अपने साथ बच्चाें का भविष्य संवारने में लीन से हो गए। पता ही नहीं था कि कौन सी सहेली कहां है, लेकिन कोरोना संकट ने नया अवसर दिया। लाकडाउन के समय घर पर रहते फेसबुक से जुड़े। नए पुराने मित्रों को जोड़ते गए। ऐसे में सहपाठियों के साथ जुड़ने का सिलसिला सा चल पड़ा। सोशल मीडिया पर सहपाठी चैट करती रहीं। 3 माह पहले वाट्सएप पर सहपाठियों का ग्रुप बना। वाट्सएप चैट करने का दौर सा चल पड़ा। सभी सहेलियों ने एक दिन साथ मनाने का निर्णय लिया।
दरअसल वे सहेलियां अलग अलग शहर से आई थीं। स्कूल में सहपाठी रहीं। करीब 27 साल बाद मिलने का रोमांच उनके लिए भी भरपूर आनंददायक था। संगीता निमजे (नागपुर), शालिनी कान्हेकर (इंदाैर), सुनीता गुप्ता (भिलाई) व रोहिणी थामस गेम्स (कन्हान) से आईं थीं। 3 से 4 सहेलियां पहुंचने ही वाली थीं। वे बंगलुुरु, सिलीगुडी, बैतूल से नागपुर के लिए निकली थीं। सहेलियों से मिलन के क्षण को अविस्मरणीय ठहराते हुए संगीता ने कहा-हम एसएस गर्ल्स हाईस्कूल गोंदिया की छात्रा रही हैं। 1994 के बाद इस तरह प्रत्यक्ष में पहली बार मिल रही हैं।
बच्चों को घर पर छोड़ ‘बच्चा’ बन गईं : 15 दिन से मिलने की योजना बन रही थी। पहले गोंदिया के स्कूल में ही मिलने के लिए चर्चा की। बाद में तय किया कि नागपुर में मिलेंगे। कुछ सहेलियां कार से, तो कुछ रेल से नागपुर के लिए निकलीं। इस मिलन से परिवार के अन्य सदस्यों को दूर रखा गया। शालिनी हंसते हुए कहती हैं-बच्चों को घर में छोड़ हम बच्चा बनने आई हैं। सहेलियों ने फुटाला ही नहीं, अंबाझरी, खिंडसी तालाब का भी भ्रमण किया। एक सहेली ने बताया कि वह स्कूल में कैप्टन थी। उनकी सहेलियांे का ग्रुप स्कूल की सांस्कृतिक व खेलकूद संबंधी गतिविधियों में आगे रहता था। वर्षों बाद भी सभी सहेलियां स्कूल के दिनों की तरह ही उन्मुक्त मिजाज में थीं। पैरों से पानी उड़ाना, बलून उड़ाते हुए झूमना, बाल-सुलभ बातें करना। सहेलियों के लिए मानों बचपन लौट आया था।