स्मृति मंदिर के आस-पास निर्माणकार्य पर आरएसएस की अर्जी हाईकोर्ट ने की खारिज

स्मृति मंदिर के आस-पास निर्माणकार्य पर आरएसएस की अर्जी हाईकोर्ट ने की खारिज

Bhaskar Hindi
Update: 2019-07-11 06:05 GMT
स्मृति मंदिर के आस-पास निर्माणकार्य पर आरएसएस की अर्जी हाईकोर्ट ने की खारिज

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  रेशमबाग स्थित स्मृति मंदिर के आस-पास के निर्माणकार्य का विरोध करती याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। आरएसएस ने पूर्व में अर्जी दायर कर दावा किया था कि स्मृति मंदिर से उनका कोई संबंध नहीं है, उन्हें इस प्रकरण में न घसीटा जाए। इस पर   हाईकोर्ट ने आरएसएस का नाम प्रतिवादियों की सूची में से हटाने से इनकार करते हुए उनकी अर्जी खारिज कर दी। आरएसएस की अर्जी के खिलाफ याचिकाकर्ता जनार्दन मून के अधिवक्ता अश्विन इंगोले ने दलील दी कि हेडगेवार स्मारक समिति के मेमोरेंडरम के नियम 7-ब में साफ किया गया है कि आरएसएस के सरसंघचालक ही हेडगेवार स्मारक समिति के अध्यक्ष होते हैं। ऐसे में आरएसएस की अर्जी मंे तथ्य नहीं है। मामले मंे विविध पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने आरएसएस की अर्जी खारिज कर दी। 

इस बात पर आपत्ति
दरअसल जनहित याचिका में मुद्दा उठाया गया है कि नागपुर महानगरपालिका की स्टैंडिंग कमेटी ने वर्ष 2017 में स्मृति मंदिर परिसर में सुरक्षा दीवार बनाने के लिए और यहां से सड़क बनाने के लिए 1 करोड़ 37 लाख रुपए मंजूर किए। याचिकाकर्ता का इस पर विरोध है। दलील है कि आरएसएस एक गैर-पंजीकृत संस्था है। ऐसे में आरएसएस के लिए लाभकारी निर्माणकार्य करके मनपा करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग कर रही है, जबकि अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए मनपा के पास फंड की कमी है। उन्होंने निर्माणकार्य को अवैध बता कर इसे रद्द करने का आदेश जारी करने की प्रार्थना हाईकोर्ट से की है।

यह थी संघ की दलील
हाईकोर्ट में संघ की ओर से दायर शपथ-पत्र में सफाई दी गई थी कि रेशमबाग स्थित स्मृति मंदिर से उनका कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कोर्ट को बताया था  कि डाॅ. हेडगेवार स्मारक समिति से आरएसएस का कोई संबंध ही नहीं है। संघ का दावा था कि स्मारक समिति का गठन सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1960 के तहत स्वतंत्र संस्था के रूप में हुआ है। संघ के अनुसार, यह सारी याचिका महज सियासी पैंतरा है। इस जनहित याचिका को खारिज किया जाना चाहिए, लेकिन अब हाईकोर्ट ने संघ की ही अर्जी खारिज कर दी है।

इधर पूछा-क्या रेत माफिया पर मकोका लगाया जा सकता है?
रेत माफियाओं की ओर से पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों पर हमले के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। इस मुद्दे पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सू-मोटो जनहित याचिका दायर कर रखी है। इस पर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या रेत माफिया के खिलाफ महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ अनऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के तहत मामला दर्ज किया जा सकता हैं? राज्य सरकार को तीन सप्ताह में अपना शपथ-पत्र कोर्ट में प्रस्तुत करना है। 

इस मामले ने खींचा ध्यान 
दरअसल, बीते 23 अप्रैल को नायब तहसीलदार सुनील सालवे अपने स्टॉफ के साथ शहर से बाहर जा रहे थे। उस वक्त दिघोरी उड़ानपुल के पास पारडी रोड पर एमएच-40 एके 8056 और एमएच-36 एफ 4157 क्रमांक के ट्रक खड़े थे। उनमें रेत भरा था। अधिकारियों ने ट्रक चालक से पूछताछ शुरू की, दस्तावेज मांगे तो ट्रक चालक आनाकानी करने लगा। उसी वक्त एक मर्सिडीज बेंज कार वहां आई। उसके चालक ने राजस्व अधिकारियों पर कार चढ़ाने का प्रयास किया। अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए पीछे हटे, तो आरोपी अपने वाहन लेकर फरार हो गए। अधिकारियों पर रेत माफिया के इस तरह हमले बढ़ते देख हाईकोर्ट ने स्वयं जनहित याचिका दायर की है। मामले में सरकार की ओर से एड.आनंद देशपांडे ने पक्ष रखा। 

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