माहुर की पहाड़ियों में बसा रेणुका माता मंदिर, यहां पूरी होती है हर मनोकामना

माहुर की पहाड़ियों में बसा रेणुका माता मंदिर, यहां पूरी होती है हर मनोकामना

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-27 04:35 GMT
माहुर की पहाड़ियों में बसा रेणुका माता मंदिर, यहां पूरी होती है हर मनोकामना

डिजिटल डेस्क,यवतमाल। माहुर की पहाड़ियों में स्थापित रेणुका माता मंदिर शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। हर साल नवरात्रि पर मां के दर्शन के लिए हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। गौरतलब है कि शक्तिपीठों का पौराणिक कथाओं में अलग ही महत्व है। यवतमाल व नांदेड़ जिले की सीमा पर स्थित माहुर में भी रेणुका माता के शक्तिपीठ का भी अलग ही महत्व है।

इस मंदिर के लेकर कई किवदंतियां हैं। कहा जाता है कि माता रेणुका का सिर जमदग्नि ऋषि के कहने पर उनके पुत्र परशुराम ने काट दिया था। इस बारे में माहुर संस्थान के पुजारी संजय कान्नव ने बताया कि रोजाना पास की नदी से माता रेणुका गगरी में पानी भरकर लाया करती थीं। उसके बाद इस पानी से जमदग्नि ऋषि स्नान करके भगवान महादेव की पूजा-अर्चना किया करते थे, लेकिन एक दिन पानी लाने में विलंब हो गया। सूर्यास्त तक जब पानी नहीं आया तो जमदग्नि ऋषि को महसूस हुआ कि उनका ब्राह्मणत्व खत्म हो गया। इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को उनकी माता का सिर काटने का आदेश दे दिया। परशुराम ने आज्ञा का पालन किया। यह देख वे संतुष्ट हुए और उन्होंने परशुराम से कोई वरदान मांगने के लिए कहा। तब पुत्र ने माता रेणुका को फिर से जीवित करने का वरदान मांगा। जमदग्नि ऋषि ने इसे प्रकृति के खिलाफ बताया और कहा कि 21 दिन के अंदर माता रेणुका दर्शन देंगी। 

हर मन्नत होती है पूरी
दूसरी किवदंती के मुताबिक जमदग्नि ऋषि के पास कामधेनु गाय थी। उसे प्राप्त करने के लिए सहस्त्र अर्जुन राजा ने उन पर हमला कर दिया जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। इस समय उनके पुत्र परशुराम को अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार ऐसी जगह करना था जहां किसी ने भी कभी पग न धरा हो। ऐसा स्थान माहुर की पहाड़ी पर उन्हें मिला जिसके बाद अंतिम संस्कार का पौराहित्य भगवान दत्तात्रय ने किया। पानी की जरूरत पड़ने पर परशुराम ने बाण मारकर मातृ तीर्थ कुंड का निर्माण करवाया था। 13 दिन बीतने के बाद माता-पिता के सभी संस्कार पूर्ण करने के बाद उनके वियोग में भगवान परशुराम बहुत रोए। इस दौरान माता रेणुका ने उन्हें दर्शन दिया। 

परशुराम झूला
मंदिर में परशुराम झूला भी है। निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति की मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी हो जाने पर छोटा झूला लाकर मंदिर में चढ़ाते हैं। उसे परशुराम झूला कहा जाता है। इस स्थान पर कई झूले नजर आते हैं। जमदग्नि ऋषि भगवान शिव के परमभक्त थे। उन्हीं के मंदिर में वे पूजा जप व तप किया करते थे। इस मंदिर में शिवलिंग, नागराज, नंदी आदि की भी प्रतिमाएं हैं। स्कंद पुराण में धर्मराज व मार्कन्डेय ऋषि के बीच हुए संभाषण में भी परशुराम को रेणुका माता के दर्शन देने की बाद दर्ज है। रेणुका माता मंदिर के सामने रामगड किला है जिस पर महाकाली का मंदिर है। इस देवी को अष्टमी में होम हवन के साथ निमंत्रित करने के लिए माहुर संस्थान के ट्रस्टी व पुजारी सप्तमी पर यहां जाते हैं। यहां पर भगवान परशुराम का भी मंदिर है। यहां आने वाले भक्तों को तांबुल (जिसे कूटा हुआ मसाला पान कहते है) भी प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
 

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