एहतियातन हिरासत को आसान विकल्प के तौर पर न देखा जाए

हाईकोर्ट एहतियातन हिरासत को आसान विकल्प के तौर पर न देखा जाए

Bhaskar Hindi
Update: 2021-09-08 13:38 GMT
एहतियातन हिरासत को आसान विकल्प के तौर पर न देखा जाए

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कानून-व्यवस्था से जुड़ी सामान्य समस्या से निपटने के लिए लोगों को एहतियातन हिरासत में लेने की व्यवस्था को आसान विकल्प के रुप में नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि इससे नागरिकों की स्वतंत्रता पर असर पड़ता है। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में इस बात को स्पष्ट किया है। पुणे के एक शख्स को पुलिस द्वारा एहतियातन हिरासत में लेने के आदेश को रद्द करते हुए कोर्ट ने यह बात स्पष्ट की है। 

न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि पुणे के डिस्ट्रिक मजिस्टेट ने याचिकाकर्ता निलेश घ्यावल को एहतियातन हिरासत में रखने को लेकर 2 मार्च 2021 को जो आदेश जारी किया है उसमे यह साफ नहीं है कि याचिकाकर्ता को कब तक एहतियातन हिरासत में रखा जाएगा। खंडपीठ ने कहा कि जिन सबूतों के आधार पर याचिकाकर्ता को हिरासत में लेने का आदेश जारी किया गया है। वे यह नहीं दर्शाते है कि याचिकाकर्ता को यदि हिरासत में नहीं लिया गया तो सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा हो सकता है। 

याचिकाकर्ता एमपीडीए कानून 1981 के तहत एहतियातन हिरासत में लिया गया था। क्योंकि याचिकाकर्ता पर पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में दहशत फैलाने व अपराध में जानलेवा हथियार करने का इस्तेमाल करने का आरोप था। याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल को नियमों के विपरीत एहतियातन हिरासत में लिया गया है। अपहरण से जुड़े एक मामले में मेरे मुवक्किल को जमानत भी मिल चुकी है। वहीं अतिरिक्त सरकारी वकील माधवी म्हात्रे ने दावा किया कि याचिकाकर्ता को जनहित में एहतियातन हिरासत में लिया गया है।जो की न्यायसंगत है। इसलिए इस मामले में हस्तक्षेप न किया जाए।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि उपद्रवी आचरण निश्चित तौर पर कुछ हद तक कानून व्यवस्था पर असर डालता लेकिन ऐसा आचारण से किया जानेवाला हर कृत्य अपराध हो ऐसा संभव नहीं है। एहतियातन हिरासत में रखा जाना नागरिकों की आजादी को प्रभावित करता है। इसलिए सामान्य कानून व्यवस्था से जुड़ी परेशानी से निपटने के लिए एहतियातन हिरासत में रखने की व्यवस्था को आसान विकल्प के रुप में न देखा जाए। इस तरह से खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के एहतियातन हिरासत में रखने के आदेश को रद्द कर दिया। 

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