एग्रोविजन वर्कशॉप और नेशनल एक्सपाे में नई टेक्नालॉजी का बोलबाला
एग्रोविजन वर्कशॉप और नेशनल एक्सपाे में नई टेक्नालॉजी का बोलबाला
डिजिटल डेस्क, नागपुर। रेशमबाग में 22 से 25 नवंबर तक आयोजित एग्रोविजन वर्कशॉप और नेशनल एक्सपाे में देशभर के कृषि के क्षेत्र में उपयोग होने वाली हर नई तकनीक को नागपुर में लाया गया है। इसमें कई नई ऐसी तकनीक भी हैं जिन्हें पेटेंट कराया गया है और वह कृषि के क्षेत्र में बहुत उपयोगी है। इसी तरह की दो नई तकनीक को पेटेंट करा कर नागपुर के एग्रोविजन में प्रेजेंट किया गया है। इसमें केले के तने से फाइबर निकालकर और उससे धागा बनाने की तकनीक है। साथ ही एक कॉटन प्लकर है जो कपास के पौधे में से पत्ती और बीज को अलग कर देता है और पूरी तरह से कॉटन निकाल सकते हैं।
केले के पेड़ से फाइबर निकाल कर कपड़े बनाने की मशीन : केले के पेड़ से फाइबर निकाल कर उससे धागा बनाया जा रहा है। वह धागा जूट की तरह होता है जिससे कपड़े और थैले बनाए जाते हैं। इस तरह की नई तकनीक से नया व्यवसाय शुरू होगा और किसानों को भी अधिक लाभ मिलेगा। इस तकनीक को आईडीईएमआई इंस्टीट्यूट फॉर डिजाइन ऑफ इलेक्ट्रिकल मेजरिंग इंस्ट्रूमेंट मुंबई का पेटेंट है।
कम खर्च आता है
केले के पेड़ के कई फायदे हैं और इसके पत्तों का भी उपयोग किया जाता है। पेड़ों से फाइबर निकाल कर धागा बनाने की प्रक्रिया में अन्य धागा निकालने की प्रक्रिया से कम खर्च आता है। इस मशीन की कीमत करीब 20 हजार है और इसकी जानकारी इंटरनेट और इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर भी है। इसे खरीदने के लिए एग्रोविजन में एमएसएमई के छोटे स्टॉल पर भी बुक कर सकते हैं।
कॉटन प्लकर से आसान होगा कपास चुनना
विदर्भ कपास उत्पादन के लिए सबसे प्रसिद्ध है। इसे सफेद सोना भी कहा जाता है, लेकिन कपास के पौधे में कपास निकलने में मानवीय शक्ति का उपयोग किया जाता है। इसके लिए कॉटन प्लकर मशीन भी बनाई गई है। जो ज्यादा से ज्यादा 1 किग्रा की है और इसकी कीमत भी लगभग 2 से 4 हजार के बीच है। इस मशीन से कपास के पौधे से पत्ती-बीज और अन्य कचरा छोड़कर केवल कपास को एकत्रित किया जा सकता है। इससे कपास एकत्रित करने की प्रक्रिया में गति मिलेगी। इसमें मोटर होती है, जो एक बार चार्ज होने पर 4 से 6 घंटे तक चलती है। यह मशीन इंडो-जर्मन टूल रूम औरंगाबाद विभाग में बनाई गई है। इसे भी पेटेंट कर मार्केट में लाया जा रहा है। इसी के साथ ही मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव जयेश बिड़वई ने बताया कि, इस तरह की मशीन को चाइना में बनाया गया था, लेकिन यह वहां पर फेल हो गई थी। अब यह मशीन भारत में बनी है और पूरी तरह सफल है।
पोल्ट्री फार्मिंग में 1 हजार करोड़ से अधिक की कमाई
भारत में पोल्ट्री व्यवसाय ने अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दिया है और इसने 1 हजार करोड़ से अधिक की कमाई की है। कार्यशाला में उपस्थित विशेषज्ञों का कहना है कि, इस व्यवसाय के माध्यम से 50 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार मिला है।
रेशमबाग में चल रही कृषि प्रदर्शनी में रविवार को "पोल्ट्री फार्मिंग एंड रिस्क-टेकिंग" पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। डॉ. मुकुंद कदम और डॉ. पी.एल. पवार प्रमुखता से उपस्थित थे। ‘चिकन का खाद, रासायनिक खाद का एक बढ़िया विकल्प है और यह लंबे समय तक चलने वाला और भरपूर उत्पाद देने वाला व्यवसाय है। इसकी दो शाखाएं हैं। डॉ. मुकुंद कदम और डॉ. पी.एल. पवार ने कहा कि, लेयर फार्मिंग और ब्रॉयलर चिकन की दोनों शाखाएं में व्यवसाय अपने दम पर या करार करके किया जा सकता है। अधिक वजन होने पर मुर्गियांे का कम नुकसान होने पर उन्हें बेहतर कीमत हासिल हो सकती है। उन्होंने कहा कि, भविष्य में इस उद्योग के अवसर बढ़ेंगे।
विद्यार्थियों में मेट्रो परियोजना का आकर्षण
रेशमबाग मैदान पर 22 नवंबर से शुरू हुई 11वीं एग्रोविजन प्रदर्शनी में महामेट्रो के स्टॉल पर नागरिकों का उत्साह देखने को मिल रहा है। स्टॉल पर मेट्रो रूट की जानकारी, सोलर पैनल, स्टेशन 3डी डिजाइन, मल्टीलेयर ट्रांसपोर्ट सिस्टम, लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए फीडर सर्विस, 5डी बीम अल्ट्रा मॉडल तकनीक और होने वाले फायदे, पर्यावरण रक्षक मेट्रो परियोजना के लिए यात्रियों को मिल रही सुविधा की जानकारी दी जा रही है। कृषि विषयक संशोधन और आधुनिक तकनीक के बारे में किसानों को जानकारी देने के उद्देश्य से एग्रोविजन प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। प्रदर्शनी में रोजाना 5 से 6 हजार नागरिक आते हैं।