वैवाहिक विवाद में गर्भपात की अनुमति मांगने का आधार नहीं : बांबे हाईकोर्ट

वैवाहिक विवाद में गर्भपात की अनुमति मांगने का आधार नहीं : बांबे हाईकोर्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2018-07-06 13:36 GMT
वैवाहिक विवाद में गर्भपात की अनुमति मांगने का आधार नहीं : बांबे हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कृष्णा शुक्ला। वैवाहिक विवाद गर्भपात की अनुमति देने का आधार नहीं हो सकता है। पति पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाकर गर्भपात की अनुमति मांगनेवाली महिला की याचिका को खारिज करते हुए बांबे हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। 23 सप्ताह की गर्भवति महिला ने याचिका में दावा किया था कि वह मिरगी की बीमारी से ग्रसित है। विवाह के बाद उसने अपने पति से सुरक्षित यौन संबंध बनाने का आग्रह किया था लेकिन पति ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। जिसके चलते वह गर्भवति हो गई। मिरगी का इलाज जारी होने के चलते गर्भनिरोधक उपायों का मुझ पर विपरीत असर न हो इसके कारण मैने कोई दवाई नहीं ली। इस बीच मुझे ससुराल में काफी मानसिक व शारीरिक यातना का सामना करना पड़ा। ससुरालवालों की घरेलू हिंसा से तंग आकर मैं अपने माता-पिता के घर आ गई। कुछ दिनों बाद जब मैंने अपनी जांच कराई तो डाक्टरों ने मुझे 23 सप्ताह की गर्भवति बताया।

मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी कानून के मुताबित 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। लिहाजा महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में महिला ने कहा था कि वह अब आगे की पढाई करना चाहती है और अपना  भविष्य में कैरियर बनाना चाहती है। इसके साथ ही वह मिरगी की बीमारी से ग्रसित है। ऐसे में उसे बच्चे को जन्म देना संभव नहीं है। लिहाजा उसे गर्भपात की इजाजत दी जाए।

न्यायमूर्ति शांतनु केमकर व न्यायमूर्ति नितीन सांब्रे की खंडपीठ ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि हमारे सामने डाक्टरों का कोई ऐसा दस्तावेज नहीं पेश किया गया है जो दर्शाए की बच्चे को जन्म देने के चलते महिला की जान को खतरा हो सकता है। महिला के पेट में पल रहे शिशु को खतरा होने को लेकर भी कोई रिपोर्ट हमारे सामने नहीं पेश की गई है। इसके अलावा मामले से जुड़ी महिला शिक्षित है। वह दिमाकी तौर से कमजोर भी नहीं है। कानूनन मेडिकल कारणों के आधार पर ही गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। वैवाहिक विवाद गर्भपात की अनुमति देने का आधार नहीं है। इसलिए महिला की याचिका को खारिज किया जाता है। 

 

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