3 साल में दोगुने हुए थर्ड जेंडर वोटर,अब वेलफेयर बोर्ड बनाने की मांग
3 साल में दोगुने हुए थर्ड जेंडर वोटर,अब वेलफेयर बोर्ड बनाने की मांग
डिजिटल डेस्क,मुंबई। थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता मिलने के बाद से नई सामाजिक पहचान ने किन्नरों का मनोबल जरूर बढ़ाया है। सबसे अहम यह है कि मतदाता के रूप में उनकी पहचान दर्ज होने की शुरुआत हुई। इसके फलस्वरुप राज्य में किन्नर मतदाताओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। बीते तीन साल में किन्नर मतदाताओं की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। राज्य में फिलहाल किन्नर वोटरों की संख्या 1645 है। जबकि साल 2014 में मतदाता सूची में 918 किन्नरों का पंजीयन हुआ था।
गौरतलब है कि हाल ही में सोलापुर के मालशिरस तहसील के तरंगफल ग्राम पंचायत के सरपंच पद पर किन्नर ज्ञानेश्वर ऊर्फ माउली कांबले ने जीत दर्ज की है। चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के समय 918 किन्नर मतदाता थे। फिर इस साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान 972 किन्नरों ने पंजीयन कराया। साल 2015 में किन्नर वोटरों की संख्या 1038 हो गई। साल 2016 में 1392 किन्नर मतदाता बने। अभी कुल 1645 किन्नर मतदाता हैं।
वेलफेयर बोर्ड बनाना चाहिए
किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि राज्य में किन्नर मतदाताओं की संख्या और भी बढ़ सकती है,लेकिन सरकार को सबसे पहले किन्नरों के लिए वेलफेयर बोर्ड बनाना चाहिए। यदि वेलफेयर बोर्ड बनाया जाता है तो राज्य में किन्नरों की कुल संख्या का पता चल सकेगा। इसके बाद मतदाता सूची में किन्नरों की संख्या भी बढ़ेगी। लक्ष्मीनारायण ने कहा, हम केवल मतदाता पहचान पत्र लेकर क्या करेंगे। किन्नरों के लिए वेलफेयर बोर्ड बेहद जरूरी है।
नहीं सुनती सरकार
लक्ष्मीनारायण ने कहा कि हम लोग वेलफेयर बोर्ड की मांग को लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस और प्रदेश की महिला व बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे के पास कई बार गए। सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया। लक्ष्मी नारायण ने कहा कि मुख्यमंत्री की पत्नी अमृता फडनवीस ने भी हमारे पक्ष में आवाज उठाई है। उन्होंने मुख्यमंत्री से कई बार कहा। तब भी सरकार सुनने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने साल 2013 से मतदाता सूची में किन्नरों का अलग से पंजीयन कराना शुरू किया है।
ये भी पढ़ें- भोपाल में किन्नरों के लिए स्पेशल टॉयलेट, चेंजिंग और मेकअप रूम में भी
थर्ड जेंडर की बढ़ी एक्टिविटी
थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता मिलने के बाद से किन्नरों के लिए समाज में चाहे ज्यादा चीजें न बदली हों , लेकिन इस नई सामाजिक पहचान ने उनका मनोबल जरूर बढ़ाया है। सबसे अहम यह है कि मतदाता के रूप में उनकी पहचान दर्ज होने की शुरुआत हुई है। भारतीय राजनीति में आने वाले चुनावों में किन्नरों की क्या भूमिका होगी यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना साफ है कि हर एक नए चुनाव में उनकी बढ़ती सक्रियता, मतदाता से उम्मीदवार बनने की दिशा में एक जरूरी कदम है। राजनीति से जुड़े किन्नरों के बारे में एक मान्यता यह भी है कि अधिकांशतः किन्नर लंबे समय तक जमीनी स्तर पर पार्टी का काम नहीं करते, वे सीधे ही उच्च पद चाहते हैं।
समाज से जुड़कर भी हैं उपेक्षित
किन्नरों के जीवन की विडंबना है कि एक तरफ इन्हें शुभ माना जाता है तो दूसरी तरफ आम जनता इनकी न सिर्फ उपेक्षा करती है बल्कि इनका मजाक भी उड़ाती है। हर शुभ कार्य में इनका आशीर्वाद बेहद शुभ माना जाता है वहीं इनके प्रति लोगों के देखने का नजरिया अलग होता है। थर्ड जेंडर हर त्योहार मनाता है वैसे बिना किसी मलाल के ये लोग हर त्योहार मनाते हैं। राखी,करवाचौथ,होली हो या फिर दिवाली इनके यहां हर त्योहार की रौनक ही अलग होती है।