जानकर, खोत और मेटे किस पार्टी के विधायक - जयंत पाटिल
जानकर, खोत और मेटे किस पार्टी के विधायक - जयंत पाटिल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। विधान परिषद में शेकाप के सदस्य जयंत पाटील ने प्रदेश के पशुपालन मंत्री महादेव जानकर, कृषि राज्य मंत्री सदाभाऊ खोत और विनायक मेटे की सदन की सदस्यता को लेकर सवाल खड़ा कर दिया। इस पर सभापति रामराजे निंबालकर ने कहा कि इस बारे में सदन के नेता चंद्रकांत पाटील और चुनाव आयोग के अधिकारियों से चर्चा के बाद मैं जानकारी दुंगा। सभापति ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो इस मसले पर राज्य के महाधिवक्ता से सलाह लेकर सदन को सूचित किया जाएगा। बुधवार को पाटील ने कहा कि मंत्री जानकर राष्ट्रीय समाज पक्ष, राज्य मंत्री खोत रयत क्रांति संगठन और मेटे शिवसंग्राम के अध्यक्ष हैं। ये पार्टियां चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं। लेकिन तीनों नेताओं ने विधान परिषद चुनाव लड़ते समय भाजपा से उम्मीदवारी दाखिल की थी।
तीनों नेता भाजपा के टिकट पर चुन कर आए
सदन में तीनों नेता भाजपा के टिकट पर चुन कर आए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि तीनों नेताओं की खुद की पार्टी होने के बावजूद ये लोग भाजपा के टिकट पर चुनाव कैसे लड़ सकते हैं। पाटील ने कहा कि सदन में संवैधानिक पेंच निर्माण हो गया है। सदन में तीनों सदस्यों को लेकर स्थिति साफ होनी चाहिए। इसके जवाब में प्रदेश के शिक्षा मंत्री विनोद तावडे ने कहा चुनाव में उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करते समय पार्टी की तरफ से एबी फार्म दिया जाता है। पार्टी की तरफ से एबी फार्म हासिल करने के बाद कोई भी उम्मीदवार नामांकन भर सकता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
अपने दल नहीं भाजपा के हैं नेताः मुंडे
इसके बाद विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे ने कहा कि मंत्री तावडे के स्पष्टीकरण से साफ हो गया है कि जानकर, खोत और मेटे अपने दल के नहीं भाजपा के नेता हैं। शिवसेना के सदस्य अनिल परब ने भी यह मुद्दा उठाया। इस दौरान विपक्ष के सदस्य सरकार को घेरने की कोशिश करने लगे। इससे पहले मंगलवार को शिवसेना के नेता अनिल परब ने भाजपा की तरफ से महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष के अध्यक्ष नारायण राणे को राज्यसभा की उम्मीदवारी को लेकर सवाल उठाया था। परब ने कहा कि राणे ने खुद पार्टी बनाई है। उस पार्टी के अध्यक्ष वह खुद हैं। ऐसे में वह भाजपा के टिकट पर चुनाव कैसे लड़ सकते हैं। उन्होंने भाजपा की सदस्यता कब हासिल की है। दूसरी तरफ चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार जानकर, खोत और मेटे की सदस्यता पर कोई खतरा नहीं है। चुनाव आयोग के नियमों में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि किसी दल का अध्यक्ष दूसरे दल के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ सकता है।