दो में पति-पत्नी और ससुराल से जुड़े मामलों पर संज्ञान, नौकरी पेशा पत्नी भी मेंटेनेंस की हकदार

3 बड़े मामले दो में पति-पत्नी और ससुराल से जुड़े मामलों पर संज्ञान, नौकरी पेशा पत्नी भी मेंटेनेंस की हकदार

Bhaskar Hindi
Update: 2023-03-13 12:19 GMT
दो में पति-पत्नी और ससुराल से जुड़े मामलों पर संज्ञान, नौकरी पेशा पत्नी भी मेंटेनेंस की हकदार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले में माना है कि पति से अलग रहने वाली पत्नी अगर नौकरी कर रही है और उसका वेतन पर्याप्त नहीं है, तो पति को उसे मेंटेनेंस देना होगा। हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी को भी वैसी ही जीवनशैली जीने का अधिकार है, जिस पृष्ठभूमि से पति और पत्नी आते हैं। इस निरीक्षण के साथ हाई कोर्ट ने पति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने दलील दी थी िक पत्नी के नौकरीपेशा होने के कारण उसे मेंटेनेंस नहीं मिलना चाहिए। हाई कोर्ट ने नागपुर के पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को कायम रखा है, जिसमें निचली अदालत ने युवक को पत्नी के लिए 10 हजार रुपए और बेटी के लिए 10 हजार रुपए प्रतिमाह मेंटेनेंस देने का आदेश दिया था।

आए दिन विवाद होने लगे : इस दंपत्ति का विवाह 14 दिसंबर 2017 को हुआ था। विवाह के कुछ वर्षों बाद उन्हें एक बेटी हुई। परिवार पुणे में रहने लगा, लेकिन समय के साथ पति-पत्नी में तालमेल नहीं बन पाया। आए दिन विवाद होने लगे। परेशान होकर पत्नी, पति को छोड़ नागपुर में अपने माता-पिता के साथ आ कर रहने लगी। अपने और अपनी बेटी के भरण पोषण के लिए पति से मेंटेनेंस के लिए उसने नागपुर के पारिवारिक न्यायालय में अर्जी दायर की। पत्नी ने दलील दी कि उसके पति का वेतन 1 लाख रुपए प्रतिमाह है, जबकि वह अपनी नौकरी से महज 22 हजार कमा पा रही है। उसकी कमाई से उसका और उसकी बेटी का भरण-पोषण नहीं हो रहा। ऐसे में उसने पति से अपने लिए 30 हजार रुपए और बेटी के लिए 10 हजार रुपए प्रतिमाह मेंटेनेंस का दावा किया था, लेकिन पारिवारिक न्यायालय ने केवल 10-10 हजार रुपए पत्नी और बेटी को प्रतिमाह मेंटेनेंस का हकदार माना। पति ने निचली अदालत के इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी


ससुराल वालों को फंसा कर दबाव डालने के मामले बढ़े : हाई कोर्ट

पति-पत्नी के बीच होने वाले विवाद में अनेक बार ससुराल वालों को बेवजह फंसाने का प्रयास किया जाता है। कई घरेलू हिंसा के मामले तो ऐसे होते हैं, जिनमें ससुराल वालों की प्रत्यक्ष कोई भूमिका नहीं होती। ऐसे मामलों में परिजनों पर एफआईआर इसलिए भी दर्ज कराई जाती है, ताकि सामने वाले पक्ष पर मानसिक दबाव बनाया जा सके। इस निरीक्षण के साथ हाई कोर्ट ने वाशिम निवासी एक महिला द्वारा ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज करए गए घरेलू हिंसा के मामले से मुक्त कर दिया है।

सांवले रंग पर टिप्पणी

महिला की शिकायत थी कि उसका पति शराब का आदी था। वह अक्सर नशे में उसे मारता पीटता और गालियां देता था। एक दिन महिला ने अपने सास-ससुर, ननद और ननद के पति को सारी बात बताई। लेकिन महिला का साथ देने के बजाए ससुराल वालों ने पति का ही साथ दिया। इतना ही नहीं, महिला के सांवले रंग को लेकर उसे ताने मारे। इसके बाद कई दिनों तक महिला ऐसे ही मानसिक प्रताड़ना की शिकार होती रही। उसके रंग-रूप को लेकर ससुराल वालों की टिप्पणियां भी बढ़ती गई।

ठोस आधार नहीं : इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने माना कि महिला द्वारा ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर में कहीं भी ससुराल वालों की स्पष्ट भूमिका नहीं नजर आती। प्रकरण में पति-पत्नी के बीच तलाक का मामला निचली अदालत में विचाराधीन है। ऐसे में बहुत ज्यादा संभावना है कि ससुराल वालों पर दबाव बनाने के उद्देश्य से यह एफआईआर खारिज की गई हो। हाई कोर्ट ने मामले में सभी पक्षों को सुनकर ससुराल वालों पर दर्ज एफआईआर खारिज करने का आदेश दिया।

 

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