जल संरक्षण की धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जिला मुख्यालय में हो रही अनदेखी।

खूबसूरत बावड़ियों के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा जल संरक्षण की धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जिला मुख्यालय में हो रही अनदेखी।

Bhaskar Hindi
Update: 2022-04-23 13:14 GMT
जल संरक्षण की धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जिला मुख्यालय में हो रही अनदेखी।

डिजिटल डेस्क, पन्ना। शासन द्वारा जल संरक्षण के कार्यों को लेकर प्राथमिकता दी जा रही है। जिसके तहत प्राचीन तालाबों, कुओं, बावडियों के संरक्षण करने एवं सुरक्षित करने के निर्देश प्रशासन एवं निकायों को जारी किए गए हैं, परंतु जल संरक्षण की धरोहरों को संरक्षित करने को लेकर जिला मुख्यालय में ही अनदेखी हो रही है। शहर स्थित कुओं की साफ-सफाई नहीं होने की वजह से कई कुएं गंदगी से सरोबार हैं। प्राचीन खूबसूरत बावडियों की सालों-साल से हो रही उपेक्षा के चलते उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पन्ना शहर के वार्ड क्रमांक 12 में सिंचाई कालोनी में स्थित प्राचीन बावड़ी जोकि राजशाही समय में निर्मित हुई थी तथा बेहद ही खूबसूरत पत्थरों की दीवाल के साथ बावड़ी में खूबसूरत डिजाईन की गई है। वर्तमान समय में इस तरह की बावड़ी का निर्माण कराया जाये तो लाखों रूपए खर्च किए जाने के बाद भी इस तरह की बावड़ी का निर्माण कराना मुश्किल होगा परंतु इन तमाम खूबियों के बावजूद शहर में स्थित प्राचीन बावड़ी के संरक्षण को लेकर जिम्मेदारों द्वारा लगातार अनदेखी की जा रही है।

बावड़ी की देखरेख एवं सुरक्षा नहीं होने की वजह से पूरी बावड़ी में बड़े-बड़े झाड-झंकड उग चुके हैं, जोकि बावड़ी में लगे पत्थरों की जुडाई को तोडते हुए उसे नुकसान पहुंचा रहे हैं। बावड़ी में झाड-झंकाड होने की वजह से बावड़ी खोई हुई नजर आ रही है। इतना ही नहीं बावड़ी का काफी हिस्सा मरम्मत नहीं हेाने की वजह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। वर्तमान में जहां शहरवासी जलसंकट का सामना कर रहे हैं ऐसी स्थितियों में भी सिंचाई कालोनी स्थित प्राचीन बावड़ी में काफी मात्रा में पानी उपलब्ध है किंतु सफाई का कार्य नहीं होने की वजह से वर्षों से समा रही गंदगी की वजह से बावड़ी का पानी दूषित हो चुका है। स्थानीय वांशिदों द्वारा समय-समय पर नगर पालिका तथा प्रशासन से बावड़ी का जीर्णोद्धार कराते हुए उसे सुरक्षित कराने की मांग की जा चुकी है परंतु नगर पालिका जोकि हर वर्ष करोडों रूपए कार्यों में खर्च करती है उसके द्वारा जल संरक्षण के लिए जरूरी प्राचीन बावड़ी के जीर्णोद्वार कार्य की मांग को नजरअंदाज किया जा रहा है।

 

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