सूचना प्रौद्योगिकी के नए नियमों पर क्यों न लगाएं रोक
हाईकोर्ट का केंद्र से सवाल सूचना प्रौद्योगिकी के नए नियमों पर क्यों न लगाएं रोक
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्यों न सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के नए नियमों के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाई जाए। हाईकोर्ट में इन नियमों पर रोक लगाने की मांग को लेकर एक डिजिटल वेबसाइट व वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में आईटी के नए नियमों को चुनौती दी गई है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने आग्रह किया कि जब तक इस याचिका पर सुनवाई पूरा नहीं हो जाती है तब तक आईटी से जुड़े नियमों पर अंतरिम रोक न लगाई जाए। याचिका में इन नियमों को कठोर, अस्पष्ट, मनमानी पूर्ण व अवैध बताया गया है। इसके साथ ही याचिका में दावा किया गया है कि इन नियमों का बोलने की स्वतंत्रता व मीडिया की आजादी तथा गतिशीलता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
वहीं लिफलेट की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने कहा कि आईटी के नियम ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने का प्रयास है। यह नियम संविधान के अनुच्छेद 19 व सूचना प्रद्योगिकी कानून के तहत तय किए गए मानकों के दायरे के बाहर जाते है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हम क्यों न आईटी के नए नियमों पर रोक लगाएं। लेकिन एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने खंडपीठ से आग्रह किया कि नियमों पर अंतरिम रोक लगाने की बजाय इस याचिका को पूरी तरह से पहले सुना जाए तो उचित होगा।
देशभर की अदालतों में दायर हुई हैं याचिकाएं
इस पर खंडपीठ ने कहा कि आईटी के नए नियमों के विरोध में देश की विभिन्न हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई है। लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक इन याचिकाओं के जवाब में हलफनामा नहीं दायर किया है। ऐसे में यदि नियमों पर रोक नहीं लगाई गई तो याचिकाकर्ता लगातार खौफ के साए में रहेंगे। उन्हें इसका डर रहेगा कि कुछ भी ऑनलाइन सामग्री वेबसाइट पर प्रसारित की तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसलिए केंद्र सरकार एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करे कि नियमों पर अंतरिम रोक क्यों न लगाई जाए। खंडपीठ ने अब याचिका पर 13 अगस्त 2021 को सुनवाई रखी है।