मेडिकल एडमिशन में लागू किया गया है 10 फीसदी आरक्षण, रोक लगाने से हाईकोर्ट का इंकार
मेडिकल एडमिशन में लागू किया गया है 10 फीसदी आरक्षण, रोक लगाने से हाईकोर्ट का इंकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मेडिकल पाठ्यक्रम के एडमिशन में लागू किए गए आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) के दस प्रतिशत आरक्षण पर फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया है। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों 103 वें संसोधन के तहत आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया था। राज्य के मेडिकल शिक्षा विभाग ने 7 मार्च 2019 को एक शासनादेश के जरिए मेडिकल के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के एडमिशन में ईडब्लूएस के आरक्षण को लागू किया है। जिसके खिलाफ सामान्य वर्ग के कई छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में मुख्य रुप से मेडिकल शिक्षा विभाग की ओर से जारी किए गए शासनादेश को चुनौती दी गई है। बुधवार को न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता छात्रों की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एसबी तलेकर ने कहा कि ईडब्लूएस वर्ग को दिया गया आरक्षण संविधान के खिलाफ है। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण को लेकर तय की गई आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन करता है।
मेडिकल एडमिशन में लागू किया गया है आरक्षण
अधिवक्ता तलेकर ने कहा कि यदि ईडब्लूएस वर्ग को दिए गए आरक्षण को नहीं लागू किया जाता है तो भी राज्य की 93 प्रतिशत जनता आरक्षण के दायरे में आ जाती है। फिर भी ईडब्लूएस को दिए गए आरक्षण को लागू किया गया है। इस आरक्षण के तहत मेडिकल के विभिन्न पाठ्यक्रमों में 92 विद्यार्थियों को प्रवेश मिल रहा है। इसके चलते सामान्य वर्ग के 92 प्रतिभावान विद्यार्थी प्रवेश से वंचित हो जाएंगे। ईडब्लूएस वर्ग का आरक्षण लागू करना राज्य सरकार के लिए अनिवार्य नहीं है। इसलिए 5 अप्रैल को मेडिकल के पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए जारी होने वाली सूची में ईडब्लूएस के आरक्षण को लागू न किया जाए। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि विद्यार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर याचिका दायर की है। इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका प्रलंबित रहते इस प्रकरण की सुनवाई नहीं कर सकते। ऐसे में उचित होगा कि हाईकोर्ट में दायर याचिका को वापस लिया जाए। इस पर श्री तलेकर ने कहा कि उन्हें इस मामले में निर्देश लेने के लिए वक्त दिया जाए। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी और फिलहाल किसी प्रकार की राहत देने से मना कर दिया।