शिकायत में देरी से खत्म नहीं होता दलित उत्पीड़न का मामला : हाईकोर्ट
शिकायत में देरी से खत्म नहीं होता दलित उत्पीड़न का मामला : हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सिर्फ शिकायत करने में देरी करने का मतलब यह नहीं है कि इस वजह से दलित उत्पीड़न (एट्रासिटी एक्ट) से जुड़े प्रवाधानों के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता है। यह कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज कर दिया है। देसाई पर अहमदनगर के महार जाति के एक व्यक्ति के साथ गाली गलौच व मारपीट करने का आरोप है। इस संबंध में पीड़ित व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। मामले में गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए देसाई ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दायर की थी।
शिकायतकर्ता ने धर्मांतरण किया
आवेदन में देसाई ने दावा किया था कि शिकायतकर्ता ने अपना धर्मांतरण कर लिया है। उसने हिंदु धर्म छोड़कर इसाई धर्म अपना लिया है। इसलिए वह जाति उत्पीड़न से जुड़े कानून के तहत आरोप नहीं लगा सकता है। इसके अलावा उसने घटना के दस दिन बाद शिकायत दर्ज कराई है। आवेदन में देसाई ने खुद पर लगे सभी आरोपों का खंडन किया था। वहीं शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल के साथ मारपीट की गई है इसके साथ ही उसे जाति को लेकर गाली दी गई है। मारपीट के दौरान लगी चोट का मेरा मुवक्किल इलाज करा रहा था। जिसके चलते उसे शिकायत करने में दस दिन का वक्त लगा है।
कानून के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता
मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद जस्टिस एससी धर्माधिकारी व जस्टिस पीडी नाइक की बेंच ने कहा कि शिकायत दर्ज करने में देरी का मतलब यह नहीं है कि वह दलित उत्पीड़न से जुड़े कानून के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता। प्रथम दृष्टया शिकायत से अपराध घटित होने की जानकारी मिलती है। इसलिए जमानत अर्जी को खारिज किया जाता है। बेंच ने कहा कि आरोप सही है या गलत हम इस मुद्दे पर कोई राय नहीं व्यक्त कर रहे है। इस मुद्दे को ट्रायल के दौरान देखा जाएगा।