भीमा-कोरेगांव हिंसा में दर्ज मामले को वापस लेगी सरकार, बनेगी जांच समिति

भीमा-कोरेगांव हिंसा में दर्ज मामले को वापस लेगी सरकार, बनेगी जांच समिति

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-13 16:05 GMT
भीमा-कोरेगांव हिंसा में दर्ज मामले को वापस लेगी सरकार, बनेगी जांच समिति

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पुणे के भीमा-कोरेगांव हिंसा प्रकरण में दर्ज किए गए मामले को प्रदेश सरकार वापस लेगी। विधान परिषद में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह घोषणा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार हिंसा के दौरान दर्ज किए गए मामले वापस लेगी लेकिन इस दौरान दर्ज हुए गंभीर मामलों को लेकर सरकार अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी-कानून-व्यवस्था ) की अध्यक्षता में समिति बनाई जाएगी। यह समिति तीन महीने में मंत्रिमंडल की उपसमिति को रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद गंभीर मामलों को वापस लेने के बारे में फैसला लिया जाएगा। मंगलवार को विधान परिषद में भीमा-कोरेगांव हिंसा पर नियम 97 के तहत हुई चर्चा का जवाब मुख्यमंत्री ने यह जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने बताया कि हिंसा के दौरान राज्य भर 622 मामले दर्ज किए गए थे। इसके अलावा 350 लोगों के खिलाफ गंभीर मामले और 17 के खिलाफ एट्रासिटी के 17 मामले दर्ज हैं। इसके आधार पर 1199 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। जबकि 2254 लोगों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई। इसमें से 22 लोगों के अलावा सभी को जमानत मिल चुकी है। 

हिंसा में 13 करोड़ का नुकसान 

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंसा के दौरान कुछ हिस्ट्रीशीटर ने बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश की है। सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ दर्ज मामले वापस नहीं लेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंसा प्रकरण में लगभग 13 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसमें से 9 करोड़ 45 लाख रुपए का नुकसान भीमा-कोरगांव के आसपास हुई तोड़फोड़ और अन्य घटनाओं में हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई राज्य सरकार की तरफ से दी जाएगी। 

मिलिंद एकबोटे के खिलाफ मामला दर्ज

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंसा प्रकरण में हिंदू एकता अघाड़ी के अध्यक्ष मिलिंद एकबोटे के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सशर्त जमानत दी है। अदालत ने पुलिस को उनसे पूछताछ के लिए अनुमति दी है। लेकिन पुलिस एकबोटे को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है। इसलिए देश के अटॉर्नी जनरल के माध्यम से अदालत में एकबोटे की गिरफ्तारी के संबंध में अपील दायर की गई है। इस मामले की सुनवाई जल्द होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि पुणे में एकबोटे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस ली थी। उस समय उनके विवादित बयान के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई। इस बारे में जांच कर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि औरंगाबाद में कॉबिंग ऑपरेशन के दौरान गर्भवती महिला को परेशान किए जाने की शिकायत की भी जांच होगी। 

बाहरी लोगों के बयान से स्थिति चिंताजनक

मुख्यमंत्री ने कहा कि विपक्षी दलों की तरफ से आयोजित किए गए एल्गार परिषद में आए बाहरी लोगों के बयान से स्थिति चिंताजनक बन गई थी। ऐसा वातावरण बनाया गया कि सभी को लड़ाई पर जाना है। इस बीच मुख्यमंत्री ने कहा कि भीमा-कोरेगांव के पास वधु गांव में स्थित छत्रपति संभाजी महाराज की समाधि स्थल को प्रदेश सरकार अपने कब्जे में लेगी। समाधि स्थल पर सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके अलावा भीमा-कोरेगांव लड़ाई के प्रतीक स्मृति स्थल के पास श्रद्धालु को आने जाने के लिए एक पुल बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्मृति स्थल के पास बहुत कम जगह है। वहां पर बहुत अधिक श्रद्धालुओं के जुटने पर भगदड़ की स्थिति भी हो सकती है। इस तरह की घटना न हो। इसके लिए सरकार समुचित प्रबंध करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंसा मामले की न्यायिक जांच कोलकता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जे.एन. शहा के माध्यम से कराई जा रही है। जांच समिति में सदस्य के रूप में प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव सुमित मल्लिक को शामिल किया गया है। 

भिडे गरुजी पर चुप्पी 

सदन में हुई चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने शिव प्रतिष्ठान के संभाजी भिडे गुरुजी के बारे में बोलने से बचते रहे। इस दौरान विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे ने भिडे गुरुजी को गिरफ्तार न किए जाने को लेकर सवाल पूछा। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने भिडे गुरुजी का नाम लिए बिना कहा कि सरकार किसी भी दोषी को नहीं छोड़ेगी। 

ऐसे हुई थी हिंसा की घटना 

मुख्यमंत्री ने बताया कि पुणे के शिरूर तहसील के वधु गांव में स्मृति दिवस से पहले किसी ने एक बोर्ड लगाया था। यह बोर्ड छत्रपति संभाजी महाराज की अंतिम विधि करने वाले गोविंद गोपाल गायकवाड को लेकर था। इस बोर्ड को किसी ने फाड़ दिया था। इसके बाद दो गुटों में विवाद हुआ। इसके दूसरे दिन काफी लोग छत्रपति संभाजी महाराज के समाधि स्थल पर भगवा झंडा लेकर पहुंचे थे। इसमें से 200 लोगों ने कहा कि उन्हें भीमा-कोरेगांव की तरफ जाना है। पुलिस ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। रास्ते में इन युवकों ने हिंसा फैलाने की कोशिश की। इसके बाद दो गुटों में तनाव पैदा हुआ और हिंसा की घटनाएं हुई।

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