सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए ठोस नीति बना रही सरकार
सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए ठोस नीति बना रही सरकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। फेसबुक, व्हाट्सएप समेत अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाह फैलाने और तनाव निर्माण करने जैसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए प्रदेश सरकार प्री-डिटेक्ट पॉलिसी बनाएगी। बुधवार को विधान परिषद में प्रदेश के गृह राज्य मंत्री रणजीत पाटील ने यह जानकारी दी। पाटील ने कहा कि केंद्र सरकार के कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम ( इंडिया सर्ट) की तर्ज पर प्रदेश में महा-सर्ट स्थापित की जा रही है। महाराष्ट्र कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (महा-सर्ट) की इमारत मुंबई में होगी। इसके माध्यम से सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली अफवाहों पर रोक लगाई जा सकेगी। पाटील ने कहा कि फिलहाल सोशल मीडिया पर अफवाहों वाली सामग्री को रोकने के लिए केंद्र सरकार के इंडिया सर्ट से आग्रह करना पड़ता है। लेकिन महा-सर्ट के क्रियान्वयन के बाद राज्य के स्तर पर अफवाहों पर रोक लगाई जा सकेगी।
साइबर अपराध को लेकर उठा सवाल
विधान परिषद में प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस सदस्य सतेज पाटील ने प्रदेश में बढ़ते साइबर अपराध को लेकर सवाल पूछा था। इसके जवाब में पाटील ने कहा कि मुंबई में डेटा सेंटर बनाने का काम शुरू किया गया है। डेटा सेंटर में काम करने वाले अधिकारियों को न्यायिक अधिकारियों की तरह प्रशिक्षण दिया जाएगा। पाटील ने कहा कि राज्य में साइबर अपराध और आर्थिक अपराध बड़ी चुनौती है। इसके मद्देनजर सरकार ने जिला मुख्यालय स्तर पर 47 जगहों पर साइबर पुलिस स्टेशन का निर्माण किया है। साइबर पुलिस स्टेशन के लिए सभी जरूरी व्यवस्था की जा रही है। साइबर पुलिस स्टेशन के अब तक 138 अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। साइबर अपराध से जुड़े मामलों के लिए विशेष पुलिस महानिरीक्षक की नियुक्ति की जा रही है।
साल दर साल बढ़ रहा सजा का प्रमाण
गृह राज्यमंत्री पाटील ने बताया कि सरकार की तरफ से साइबर सुरक्षा के लिए 650 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं।इस दौरान पाटील ने कहा कि यह सच है कि साइबर अपराध से जुड़े मामले में सजा दर कम है। सजा दर बढ़ाने के लिए सरकार बेहतर व्यवस्था कर रही है। विधान परिषद में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में पाटील ने बताया किITअधिनियम के तहत साल 2012 में 561 शिकायतें दर्ज किया गया था। इसमें से 351 मामलों का पता चल सका और 8 मामलों में सजा हो पाई। साल 2012 में सजा दर का प्रमाण 20 प्रतिशत था। जबकि साल 2013 में सजा दर 19.23 प्रतिशत, साल 2014 में 25.42 प्रतिशत, साल 2015 में 40.74 प्रतिशत, साल 2016 में 23.53 प्रतिशत और साल 2017 की सजा दर 16.67 प्रतिशत है।