बेघर हुए लोगों को हर माह 15 हजार दे सरकार - हाईकोर्ट
बेघर हुए लोगों को हर माह 15 हजार दे सरकार - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। पाइपलाइन के किनारे बने झोपड़े गिराए जाने के चलते बेघर हुए लोगों को बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को हर माह 15 हजार रुपए किराया देने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कहा है कि सरकार किसी के साथ प्रदूषण युक्त इलाके में रहने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकती। पिछले दिनों मुंबई महानगरपालिका ने कोर्ट के निर्देश के तहत तानसा पाइपलाइन सहित महानगर के विभिन्न इलाके में स्थित पाइपलाइन के किनारे बने झोपड़ों को गिरा दिया था। इस कार्रवाई के चलते बेघर हुए लोगों को मुंबई के माहुल इलाके में घर दिया गया था। लेकिन मनपा की तोड़क कार्रवाई के चलते बेघर हुए 225 लोगों ने माहुल में आयल रिफाइनरी के चलते भारी वायु प्रदूषण होने का दावा करते हुए माहुल में घर लेने से इंकार कर दिया था और हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
प्रदूषण वाले इलाके में रहने को मजबूर नहीं कर सकती सरकार
याचिका में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूल के फैसले का भी जिक्र किया गया था जिसमें माहुल इलाके में वायु प्रदूषण की बात कही गई थी। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस शंकलेचा की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सरकार किसी को प्रदूषण युक्त इलाके में रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है। संविधान के अनुच्छेद 21 में हर नागरिक को प्रदूषण मुक्त परिवेश में रहने का अधिकार प्रदान किया गया है। परियोजना प्रभावित शख्स के पास यह कहने का हक है कि उसे ऐसी जगह रहने के लिए मजबूर न किया जाए जहां जीवन के लिए खतरा माना जाने वाला वायु प्रदुषण का स्तर काफी ज्यादा है। यदि किसी जगह से हटाए गए प्रभावितों का सही ढंग से पुनर्वास नहीं होता है तो यह उन्हें संविधान के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है।
चूंकी सरकार ने तोड़क कार्रवाई से प्रभावित हुए लोगों के पुनर्वास को लेकर असमर्थता जाहिर की है ऐसे में हमारे पास सरकार को प्रभावितों को आर्थिक मुआवजा प्रदान करने का निर्देश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ताकि प्रभावित अपने लिए घर ले सके। यह कहते हुए खंडपीठ ने सरकार को माहुल में घर न लेनेवाले प्रभावितों को हर माह 15 हजार रुपए किराए के रुप में व 45 हजार रुपए मकान का डिपाजिट जमा करने के लिए देने का निर्देश दिया है।