मातृत्व अवकाश में भेदभाव नहीं कर सकती सरकार- हाईकोर्ट का आदेश 

मातृत्व अवकाश में भेदभाव नहीं कर सकती सरकार- हाईकोर्ट का आदेश 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-05-11 13:02 GMT
मातृत्व अवकाश में भेदभाव नहीं कर सकती सरकार- हाईकोर्ट का आदेश 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य सरकार मातृत्व अवकाश प्रदान करने में भेदभाव नहीं कर सकती है। बांबे हाईकोर्ट ने जिला उपभोक्ता फोरम की महिला सदस्य को 6 महीने का मातृत्व अवाकाश प्रदान करने के संबंध में दिए गए आदेश में इस बात को स्पष्ट किया है। उपभोक्ता फोरम की महिला सदस्य प्रेरणा कुलकर्णी को सरकार ने यह कह कर मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया था उसकी नियुक्ति पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए की गई है। वह सरकारी कर्मचारी नहीं है। कुलकर्णी ने पहले 180 दिन के मातृत्व अव्काश के लिए पहले जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष के पास आवेदन किया। फिर उसने राज्य उपभोक्ता आयोग को भी अवकाश को लेकर आवेदन किया। लेकिन जब कही से सकारात्म जवाब नहीं मिला तो कुलकर्णी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 

जस्टिस शांतनु केमकर व जस्टिस एमएस कर्णिक की बेंच के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहाकि कुलकर्णी की नियुक्ति सिर्फ पांच साल के लिए की गई है। लिहाजा उस पर सिविल सर्विस रुल लागू नहीं होते है। इसलिए कुलकर्णी को मातृत्व अविकाश से वंचित किया गया है। कुलकर्णी के वकील ने सरकारी वकील की वकील की दलीलों को विरोध करते हुए कहा कि भले ही मेरे मुवक्किल की नियुक्ति पांच साल के लिए हुई पर सरकार ने उसकी नियुक्ति की है। इस संबंध में कुलकर्णी के वकील ने बेंच के सामने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई फैसले पेश किए। जिन पर गौर करने के बाद बेंच ने पाया कि सरकार की ओर से ठेके पर नियुक्त की गई महिला को भी अदालत ने मातृत्व अवकाश प्रदान किया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने तो महागरपालिका में दिहाड़ी मजदूर के रुप में काम करनेवाली महिला को भी मातृत्व अवकाश के लिए पात्र माना है। यह कहते हुए बेंच ने कहा कि सरकार सिर्फ इस आधार पर मातृत्व अवकाश प्रदान करने को लेकर भेदभाव नहीं कर सकती है कि किसी की नियुक्ति सिर्फ पांच साल के लिए की गई है। यह कहते हुए बेंच ने सरकार को कुलकर्णी को 180 दिन का मातृत्व अवकाश प्रदान करने का निर्देश दिया।    
 

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