पति की लंबी उम्र के लिए महिलाओं ने बांधा रक्षासूत्र, फल-फूल-माला और सिंदूर अर्पित
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पति की लंबी उम्र के लिए महिलाओं ने बांधा रक्षासूत्र, फल-फूल-माला और सिंदूर अर्पित
डिजिटल डेस्क, बीड। हिंदू पंचांग के अनुसार वट पूर्णिमा व्रत का खासा महत्व है। 14 जून को इस व्रत पर सुबह से ही महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ पर रक्षासूत्र बांधते नजर आईं। जिसे लेकर महाराष्ट्र सहित माजलगांव,पाटोदा, परली वैद्यनाथ, गेवराई, सिरसाला, धारूर, अंबाजोगाई, केज, आष्टी, शिरूर कासार, वडवणी जैसे इलाकों में मंगलवार को वट सावित्री पूजा की गई। इस दिन महिलाएं पति और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. साथ ही संतान प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए भी व्रत का विशेष महत्व माना गया है।
व्रत शुभ मुहूर्त
व्रत सूर्योदय के बाद ही रखा जाता है। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक था। इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद सुहाग से जुड़ा श्रृंगार कर श्री विठ्ठल रूक्मिणी मंदिर और बरगद के पेड़ की वट सावित्री पूजा में शामिल हुईं। महिलाओं ने 108 बार बरगद की परिक्रमा कर पूजा की। कहते हैं कि मंगलवार को वट सावित्री पूजन करना बेहद फलदायक होता है। माना जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस लिया था।
पूजा विधि
वट सावित्री अमावस्या व्रत की तरह ही होता है.
गाय के गोबर से सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बनाई जाती थी, फिलहाल दो सुपारी में कलावा लपेटकर सावित्री और मां पार्वती का रूप दिया जाता है।
चावल, हल्दी और पानी मिलाकर हथेलियों में लगा 7 बार बरगद के पेड़ पर छापा लगाते हैं, फिर वट वृक्ष में जल चढ़ाते हैं।
फल, फूल, माला, सिंदूर, अक्षत, मिठाई और पंखा अर्पित किया जाता है।
मीठे गुलगुले बना वट वृक्ष की जड़ में रखे जाते हैं
मिट्टी का दीपक, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, सुहाग का सामान चढाया जाता है।
घर में बनी पूड़ियां, भीगा चना, मिठाई, जल से भरा कलश, मूंगफली दाने, मखाने चढ़ाकर आराधना की जाती है।
माना जाता है कि बरगद पेड़ में तीनों देवों का वास है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास होता है। इसलिए इस दिन इसकी पूजा हाेती है। सावित्री ने इस दिन ही अपने पति को यमराज के चंगुल से बचाया था।