सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में फेफड़ों के प्रत्यारोपण की संभावनाएं तलाश रहे हैं : डॉ. जिंदल
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में फेफड़ों के प्रत्यारोपण की संभावनाएं तलाश रहे हैं : डॉ. जिंदल
डिजिटल डेस्क, नागपुर। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में फेफड़ों के प्रत्यारोपण की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। उसके लिए अलग से पूरी एक यूनिट काम करती है, जिसमें ट्रांसप्लांट सर्जन के साथ ही छातीरोग विशेषज्ञ, इंटेंसिविस्ट, एनेस्थेटिक, फिजियोथेरेपिस्ट आदि करीब 200 लोगों का स्टॉफ की जरूरत होती है। ट्रांसप्लांट में संक्रमण का रेट अधिक होने की वजह से यूनिट में अलग से अतिदक्षता विभाग (आईसीयू), ऑपरेशन थियेटर, स्पेशल रूम की जरूरत होती है, जहां मरीजों को अलग-अलग रखा जा सके। यह बात चेन्नई के फेफड़ा प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. अपर जिंदल ने कही। कार्यक्रम में मेडिकल अधिष्ठाता डॉ. सजल मित्रा विशेष रूप से उपस्थित थे। सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट विभाग के 25 वर्ष पूरे होने पर दो दिवसीय पल्मो एंड स्लीप मीट 2020 के शुभारंभ के अवसर पर शनिवार 7 मार्च को मेडिकल कॉलेज स्थित एपीआई हॉल में बोल रहे थे। इस अवसर पर डॉ. प्रिया रामचंद्रन, डॉ. एस.युवराजन, डॉ. हरीश चाफले, डॉ. सुशांत मेश्राम, डॉ. राधा मुंजे, डॉ. राजेश स्वर्णकार व डॉ. सतीश अग्रवाल ने विभिन्न विषयों पर अपना मत रखा।
5 फीसदी मरीजों का कर सकते हैं प्रत्यारोपण : डॉ. जिंदल ने बताया कि यदि बाह्य रोग विभाग (ओपीडी) में 100 मरीज आते है तो उसमें से 8 से 13 फीसदी मरीज फेफड़ों की बीमारी में अंतिम स्टेज में होती है, जिसमें 5 ऐसे मरीज होते हैं जिनका प्रत्यारोपण किया जा सकता है। फेफड़ों के प्रत्यारोपण के लिए देश में प्रशिक्षण नहीं िदया जाता है इसके िलए अमेरिका आदि जगह एक साल की फेलोशिप होती है। वहां फेफड़ों का प्रत्यारोपण 40 साल पहले से हो रहा है और हम पिछले 2017 से विशेष ध्यान देकर कर पा रहे हैं हालांकि भारत में 1999 में पहला प्रत्यारोपण हुआ था। पश्चिमी देशों में ऐसा देखने में आया है कि फेफड़ों की वजह से मरीज का स्वास्थ्य बिगड़ने पर हार्ट ट्रांसप्लांट करने की जरूरत पड़ती थी, हालांकि ऐसे बहुत कम मामलों में देखने में आया है। कुछ मामलों में फेफड़ों के अभाव आदि कारणों की वजह से एक फेफड़ा भी प्रत्यारोपण किया जाता है, हालांकि दोनों फेफड़े प्रत्यारोपण करने पर उसके परिणाम अच्छे देखने को मिलता है।