सूखे पीपल को हरा-भरा करेंगे ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ -जानिए ठूंठ पेड़ों को कैसे करते हैं जिंदा
सूखे पीपल को हरा-भरा करेंगे ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ -जानिए ठूंठ पेड़ों को कैसे करते हैं जिंदा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। ‘पेड़ के डॉक्टर’ के नाम से विख्यात के. बीनू नागपुर में हैं। टेकड़ी गणेश मंदिर में लगभग सूख चुके तीन पीपल के वृक्षों को फिर हरा-भरा करने के लिए आए हैं। वे आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। वह भी नि:शुल्क। यह उनका 28वां प्रयास है। अब तक वे कई स्थानों पर सौ से ज्यादा ठूंठ पेड़ों को जिंदा कर चुके हैं। इनमें कई पेड़ सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराने थे। केरल के इडुक्की में मंदिर में सूख चुके 150 वर्ष पुराने आंवला के पेड़ को हरा-भरा कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर सूख चुके पेड़ों का उपचार छह माह चलता है। इसके लिए पेड़ के तने पर विभिन्न पदार्थों से तैयार दवाओं का लेप किया जाता है।
ऐसे हुई शुरुआत : लगभग 15 वर्ष पूर्व केरल के प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप के घर के बाहर का पेड़, ठीक उसके नीचे प्लास्टिक जलाने के कारण पूरी तरह सूख गया था। के. बीनू के गुरु डॉ. एस सीतारमण ने गोबर और मिट्टी का लेप लगाकर पेड़ को हरा-भरा कर दिया। पूछने पर गुरुजी ने बताया पुराणों में पेड़ों को हरा-भरा करने का जिक्र है। इसके बाद बीनू ने पुराणों का विस्तार से अध्ययन कर यह विद्या सीखी। मालायिंचीप्पारा के सेंट जोसेफ स्कूल के कुछ बच्चों उनसे कहा कि उनके स्कूल में एक आम का पेड़ है, जिसमें कई सालों से फल नहीं लग रहा है। उन्होंने उसका भी इलाज किया। बच्चों ने बीनू को ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। आसपास के लोग बीनू को पेड़ वाले डॉक्टर के नाम से ही जानते हैं। उनकी टीम फिलहाल सात लोग हैं। टीम के केसी सुनील भी बीनू के साथ नागपुर आए हैं।
दीमक के टीले की मिट्टी उपचार के लिए अहम
पेड़ों के उपचार के लिए के. बीनू दीमक के टीले की मिट्टी का उपयोग करते हैं। बीनू का कहना है कि आयुर्वेद में पेड़ों की हर बीमारी का इलाज बताया गया है। इनमें दीमक के टीले की मिट्टी, धान के खेतों की मिट्टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्टी भी लगानी पड़ती है।
सूखे पेड़ों का हरा होते देखना जीवन का सबसे सुखद क्षण
जैसे प्राचीन काल में आयुर्वेद लोगों की नि:शुल्क सेवा करता था उसी तरह मैं पेड़ों का निशुल्क उपचार करता हूं। इस कार्य में काफी धैर्य और लगन की जरूरत होती है। अमूमन ठूठ पेड़ों को जिंदा करने में छह माह का समय लग जाता है। जब पेड़ पर नए कोंपल निकलने लगते हैं, वह मेरे जीवन का सबसे सुखद पल होता है। मैंने अब तक केरल के आस-पास के राज्यों में जाकर उपचार किया है। पहली बार इतनी दूर नागपुर आया हूं। -के. बीनू, पर्यावरणविद
दैनिक भास्कर से मिली जानकारी
कुछ माह पूर्व पेड़ों के डॉक्टर के बारे में दैनिक भास्कर में पढ़ने के बाद मंदिर समिति ने के. बीनू को नागपुर बुलाने के बारे में सोचा। हमें उम्मीद है कि मंदिर परिसर में पीपल के तीन पेड़ों को नया जीवन मिलेगा। -लखीचंद ढोबले, अध्यक्ष, टेकड़ी गणेश समिति