दीक्षांत समारोह में प्रदान की गई डिग्रियों सामने आई खामियां
दीक्षांत समारोह में प्रदान की गई डिग्रियों सामने आई खामियां
डिजिटल डेस्क, नागपुर। यूनिवर्सिटी द्वारा पोस्ट ग्रेजुएट मास कम्युनिकेशन की गलत डिग्रियां देने का मामला प्रकाश में आने के कई दिनों के बावजूद विश्वविद्यालय ने भूल सुधारने के लिए आधिकारिक गतिविधियां शुरू नहीं की है। हां, नाम न बताने की शर्त पर प्रकरण से जुड़ा हर शख्स कबूल कर रहा है कि विश्वविद्यालय से डिग्री जारी करने में भारी भूल हुई है। लेकिन चूंकि दीक्षांत समारोह में यह डिग्रियां जारी की गई हैं, लिहाजा इनमें सुधार करने की प्रक्रिया खासी जटिल है।
जवाबदारी किसकी?
वहीं दूसरी ओर इस गलती के लिए कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि कई विभाग और उसके अधिकारी जवाबदेह हैं। डिग्री जारी करने की प्रक्रिया में विश्वविद्यालय का बोर्ड ऑफ स्टडीज एकेडमिक विभाग, एकेडमिक काउंसिल, मैनेजमेंट काउंसिल और परीक्षा विभाग शामिल होता है। अंतत: विवि कुलगुरु के हस्ताक्षर के बाद दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को डिग्रियां जारी होती हैं। अब गलत नाम की डिग्रियां जारी कर देने के बाद विवि की जवाबदारी बनती है कि वे सभी गलत डिग्रियों को वापस बुलाकर सही नाम की डिग्रियां जारी करें। लेकिन इसकी प्रक्रिया खासी जटिल है।
अब तक जांच नहीं बैठाई गई
इसके पूर्व विश्वविद्यालय को मामले में गहन जांच बैठानी होगी। इसके बाद विविध प्राधिकरणों की मंूजरी के बाद एक विशेष नोटिफिकेशन जारी करके यह भूल सुधारनी होगी। वहीं दूसरी ओर गलत डिग्रियां जारी करने से विद्यार्थियों को होने वाले मानसिक परेशानी और कैरियर मंे बाधा का जवाबदार कौन है, यह भी तय करना होगा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से विवि प्रशासन इन मसलों पर मौन साधे बैठा है।
कोई लेना देना नहीं
इस पूरे प्रकरण में पाठ्यक्रम से जुड़े जिम्मेदार अधिकारी मामले से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। विवि इंटरडिसिल्पनरी शाखा की अधिष्ठाता डाॅ. राजश्री वैष्णव के बाद विवि जनसंपर्क विभाग प्रमुख डॉ. धर्मेश धवनकर ने भी स्वयं को मामले से पूरी तरह अंजान बताया है। मामले में विवि अधिकारियों ने उन्हें लिखित स्पष्टीकरण मांगा। इस विषय पर सवाल पूछने पर उन्होंने सवालों पर झल्लाते हुए जवाब दिया कि इस मामले से उनका कोई लेना देना ही नहीं है। वे डिग्री जारी करने की प्रक्रिया का हिस्सा ही नहीं है।
सवाल करने से पूर्व सारे सिस्टम को समझ लेना चाहिए। आधिकारिक रूप से उन्हंे इसपर कुछ नहीं कहना है। महाराष्ट्र विश्वविद्यालय अधिनियम पर नजर डालें तो पाठ्यक्रम संचालन के लिए विश्वविद्यालय के विभाग प्रमुख की खासी भूमिका होती है। पाठ्यक्रम के प्रारूप से लेकर तो दशा और दिशा तय करने वाले बोर्ड ऑफ स्टडीज में विभाग प्रमुख का अहम स्थान होता है। पाठ्यक्रम से जुड़ा डायरेक्शन तय करने में भी वे शामिल होते है। अंतत: डिग्रियां विभाग से ही बंटती है। गलत डिग्रियां बटने के पूर्व यदि गलती पकड़ ली जाती, तो विद्यार्थियों का खासा नुकसान बच सकता था।
लिस्ट में नाम नहीं
यूजीसी द्वारा तय किए गए नॉमिनक्लेचर के अनुसार एमए (मास कम्युनिकेशन) पाठ्यक्रम का नाम होना चाहिए, उसे छोड़ कर विवि ने मास्टर ऑफ मास कम्युनिकेशन की जो डिग्री जारी की वो गलत है। इस में सुधार होना चाहिए।
- डॉ. आर.जी.भोयर
फैकल्टी में भी गड़बड़ी
मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन सोशल साइंस फैकल्टी का विषय है। एमए तो ह्युमेनिटिज फैकल्टी में आता है। विवि ने एमए इन मास कम्युनिकेशन को इंटरडिसिप्लिनरी मंे डाल दिया है। विवि की यह गलती काफी पुरानी है, जिस पर कभी सुधार ही नहीं हुआ। यूजीसी के निर्देश के बाद जब नाम एएमसी से बदल कर एमएम मास कॉम किया, तो उसमें आधुनिक विषय जोड़ने चाहिए थे, ऐसा नहीं करके पुराने सिलेबस को नया नाम दे दिया गया।
- सुनील मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ स्टडीज मास कम्युनिकेशन
एमएमसी बंद हो चुका
एमएमसी पाठ्यक्रम हमने अपने कॉलेज में शुरू किया था। वर्ष 2009-10 में वह बंद हुआ और उसकी जगह एमए इन मास कम्युनिकेशन रखा गया। इसके बाद भी कुछ बदलाव हुए, लेकिन डिग्री का नाम एमए इन मास कम्युनिकेशन ही कायम है। - डॉ. बबन नाखले, जनसंपर्क विभाग प्रमुख, धनवटे नेशनल कॉलेज