बुटीबोरी-तुलजापुर महामार्ग की अनदेखी पर अदालत गंभीर , कोर्ट में भरेंगे 25 करोड़ रु.
बुटीबोरी-तुलजापुर महामार्ग की अनदेखी पर अदालत गंभीर , कोर्ट में भरेंगे 25 करोड़ रु.
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में मंगलवार को बुटीबोरी-तुलजापुर राष्ट्रीय महामार्ग की अनदेखी पर केंद्रित जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। हाईकोर्ट के पिछले आदेश का पालन न करने वाले केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्रालय को एक सप्ताह के भीतर 25 करोड़ रुपए कोर्ट में भरने का आदेश जारी हुआ है। ऐसा न करने पर विभाग के सचिव को खुद कोर्ट में हाजिर होना पड़ेगा।
अदालत इसलिए सख्त
दरअसल, उक्त महामार्ग किस विभाग की जिम्मेदारी है, यह तय न होने से उसका रख-रखाव नहीं हो रहा था। गत 11 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने मंत्रालय को यह तय करके नोटिफिकेशन जारी करने के आदेश दिए थे, जिसका पालन न होने पर कोर्ट ने यह आदेश जारी किया है। बता दें कि 11 अक्टूबर के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने 31 अक्टूबर को नोटिफिकेशन तो निकाला, लेकिन इसमें पुलगांव से जालना बायपास तक के ही स्ट्रेच को नोटिफाय करके राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी। महामार्ग के दो स्ट्रेच वर्धा-पुलगांव और चिखली-मेहकर को अब तक नोटिफाय करके जिम्मेदारी तय नहीं करने से हाईकोर्ट ने इसे अपने आदेश का उल्लंघन माना और नया आदेश जारी किया। साथ ही राज्य लोक निर्माण विभाग को पुलगांव-जालना बायपास दो दिनों के भीतर एनएचएआई को हस्तांतरित करने के भी आदेश दिए।
कमेटी की सिफारिशें लागू करें
बीते दिनों हाईकोर्ट ने महामार्ग के निरीक्षण के लिए एक विशेष समिति गठित की थी। समिति ने हाईवे का निरीक्षण करके अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें हाईकोर्ट में मंगलवार को प्रस्तुत की। कमेटी की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने निरीक्षण दिया कि सड़क सुधार के काम पर एनएचएआई द्वारा दी गई जानकारी पुख्ता और सटीक नहीं थी। हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को समिति की सिफारिशों पर एक सप्ताह में अमल शुरू करने के आदेश जारी किए।
यह है मामला
एचसीबीए पूर्व अध्यक्ष एड. अरुण पाटील ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अमरावती से धुले और वर्धा से सिंदखेड़ राजा महामार्ग के कामकाज में हुई लापरवाही का मुद्दा उठाया है। दरअसल, बीती सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोर्ट में जवाब दिया था कि हाईवे के रख-रखाव का जिम्मा नागपुर और अकोला सार्वजनिक निर्माणकार्य विभाग को सौंपा गया है। इसी में से कुछ हिस्से की जिम्मेदारी सागरमाला प्रकल्प को दी गई है, लेकिन जिम्मेदारी देने के बाद केंद्र को नोटिफिकेशन जारी करना था, जो नहीं किया गया। इस कारण संबंधित विभाग हाईवे के रख-रखाव की जिम्मेदारी लेने से बच रहे थे। अब मामले में हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। याचिकाकर्ता की ओर से एड.फिरदौस मिर्जा और एनएचएआई की ओर से एड. अनिश कठाने ने पक्ष रखा।