शक्कर कारखानों के कथित घोटाले को लेकर कोर्ट ने पुलिस से पूछा सवाल

शक्कर कारखानों के कथित घोटाले को लेकर कोर्ट ने पुलिस से पूछा सवाल

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-05 17:37 GMT
शक्कर कारखानों के कथित घोटाले को लेकर कोर्ट ने पुलिस से पूछा सवाल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने जानना चाहा है कि शक्कर कारखानों के कथित 25 हजार करोड़ रुपए के घोटाले को लेकर मिली शिकायत पर पुलिस ने अब तक क्या किया है। जस्टिस नरेश पाटील और जस्टिस राजेश केतकर की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। इससे पहले हजारे की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एसबी तलेकर ने कहा कि हमने 11 महीने पहले इस मामले को लेकर पुलिस महानिदेशक, मुंबई पुलिस आयुक्त गृह विभाग,सीबीआई व रमाबाई पुलिस स्टेशन में शिकायत की थी। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है। वे चाहते है कि सीबीआई से भी इस मामले की जांच कराई जाए। इस दलील पर खंडपीठ ने सरकारी वकील से पूछा कि याचिकाकर्ता की ओर से मिली शिकायत के आधार पर पुलिस ने क्या किया है? क्या शिकायत के आधार पर कोई मामला दर्ज किया गया है? इसकी जानकारी हमे अगली सुनवाई के दौरान दी जाए। हम जानना चाहते है कि पुलिस ने शिकायत पर क्या कदम उठाए है।

शरद पवार और पूर्व उपमुख्यमंत्री को बनाया गया पक्षकार
याचिका में हजारे ने इस घोटाले में कथित रुप से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) के प्रमुख व पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार की कथित भूमिका की भी जांच करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में दोनों को पक्षकार बनाया गया है। याचिका में मांग की गई है कि अवैध रुप से बेचे गए शक्कर कारखानों के पहलू की जांच के लिए सेवा निवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया जाए है। याचिका में दावा किया गया है कि शक्कर कारखाने के विकास और सरकारी निधि के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार के मुद्दे के लिए विशेष जांच दल का गठन किया जाए। याचिका में कहा गया है कि सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए निर्धारित निधि के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार के चलते सरकारी खजाने को 25 हजार करोड रुपए की चपत लगी है। हाईकोर्ट ने फिलहाल मामले की सुनवाई 12 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।

नाशिक में सीपीआरआई को जमीन आवंटन के खिलाफ दायर याचिका खारिज
बांबे हाईकोर्ट ने सेंट्रल पावर रिसर्च इंस्टीच्यूट (सीपीआरआई) को नाशिक जिले में 40 हेक्टर जमीन आवंटन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। ग्राम पंचायत शिलापुर ने जमीन आवंटन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि सरकार ने जमीन आवंटित करते समय अपने 28 मई 2010 के शासनादेश का पालन नहीं किया है। जिसके तहत जमीन को आवंटित करते समय ग्राम पंचायत से मंजूरी लेना जरुरी है। इसके अलावा सरकार ने जो जमीन आवंटित की है, वह चारागाह की जमीन है। इसलिए नियमों के विपरीत हुए जमीन के आवंटन को रद्द किया जाए। मुख्य न्यायाधीश मंजूला चिल्लूर और जस्टिस एमएस सोनक की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई।

सरकारी वकील की दलील
इस दौरान सरकारी वकील ने कहा कि जमीन की मालिक सरकार है। इसके अलावा सरकार ने यह भूमि सीपीआरआई को लीज पर दी है। सीपीआरआई केंद्रीय उर्जा मंत्रालय के तहत काम करता है। इसके महाराष्ट्र में स्थापित होने से इलेक्ट्रानिक उद्योग को काफी बढावा मिलेगा और रोजगारों का सृजन होगा। उन्होंने साफ किया कि जनहित से जुड़े प्रोजेक्ट, पानी, सिचाई व बिजली से संबंधित परियोजनाओं के लिए सरकार जमीन आवंटित कर सकती है। सरकार ने नियमों के तहत ही जमीन आवंटित की है। सीपीआरआई कोई निजी संस्था नहीं है। यह केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करता है। इसलिए याचिका में लगाए गए आरोप निराधार है। सरकारी वकील की दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हम इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है। सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर जमीन आवंटित की है।

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