सीएम ने याद करते हुए कहा, "पिता के मित्र थे कदम, उनकी हर बात मानता था"

सीएम ने याद करते हुए कहा, "पिता के मित्र थे कदम, उनकी हर बात मानता था"

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-12 15:00 GMT
सीएम ने याद करते हुए कहा, "पिता के मित्र थे कदम, उनकी हर बात मानता था"

डिजिटल डेस्क, मुंबई। वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक और पूर्व मंत्री डॉ. पतंगराव कदम के निधन पर विधानसभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शोक प्रस्ताव पेश किया। मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि डॉ कदम मेरे पिता के मित्र थे इसलिए वे मुझे भी बेटे की तरह मानते थे। अगर उन्हें कोई बात ठीक नहीं लगती थी तो वे बिना संकोच मुझे इसकी जानकारी देते थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने कोई बात कही हो और मैने उसे पूरा नहीं किया हो। 

कदम को श्रद्धांजलि
मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. कदम के निधन से महाराष्ट्र की राजनीति को अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि यह महाराष्ट्र की राजनीति की विडंबना है कि यहां विलासराव देशमुख, आरआर पाटील जैसे कई नेता असमय हमें छोड़कर चले गए। विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखेपाटील ने कहा कि डॉ कदम कभी कोई बात कहने में संकोच नहीं करते थे। वरिष्ठ होने के नाते से हमेशा मार्गदर्शन करते थे। उनका स्वभाव बेहद मिलनसार था।

मुख्यमंत्री पद की चर्चा में होता था एक नाम
विखेपाटील ने कहा कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि इतने दिनों तक सदन के भीतर हमारे आसपास बैठने वाले डॉक्टर कदम नहीं रहे। उन्होंने कहा कि राज्य में जब भी मुख्यमंत्री पद की चर्चा होती थी, उनका नाम जरूर होता था। दिल्ली में बैठे नेताओं से भी उनके बेहद मधुर संबंध रहे। वरिष्ठ राकांपा नेता अजित पवार ने कहा कि डॉक्टर कदम ने शून्य से शिखर तक का कदम तय किया था। उन्होंने कहा कि डॉ. कदम ने भारती विद्यापीठ को खड़ा करने के लिए अथक परिश्रम किया।

शुरूआत में बोर्ड लगाने जैसे छोटे मोटे काम भी अपने हाथों से किए। हम खुद शिक्षा संस्थाएं चलाते हैं, इसलिए हमें पता है कि आज भी यह आसान नहीं है। लेकिन डॉ कदम ने 60 के दशक में अपनी मेहनत के बलबूते ऐसी संस्था खड़ी कर ली, जब लोग मानते थे कि इस देश में निजी यूनिवर्सिटी चलाई ही नहीं जा सकती। अजित पवार ने कहा कि डॉक्टर कदम कभी लोगों के आग्रह को ठुकराते नहीं थे। अगर उन्हें किसी गरीब विद्यार्थी के एमबीबीएस में एडमीशन के लिए सिफारिश की जाती तो वे लाखों रुपए की फीस तक माफ कर देते थे। 
 

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