सीबीएसई की पैरेंट्स को सलाह,एडमिशन के समय ही आई टेस्ट कराना बेहतर
सीबीएसई की पैरेंट्स को सलाह,एडमिशन के समय ही आई टेस्ट कराना बेहतर
डिजिटल डेस्क, नागपुर। आम तौर पर पैरेंट्स छोटे बच्चों की आंखें चैक नहीं कराते और उन्हें स्कूल भेज देते हैं। शुरुआत में धुंधला दिखने पर बच्चे को समझ नहीं आता कि प्रॉब्लम क्या है। दो-चार साल बाद जब बच्चा शिकायत करता है और पैरेंट्स जांच कराते हैं तब तक आंखों की दिक्कत बढ़ चुकी होती है। बच्चों को स्कूल भेजने से पहले बच्चे का आई टेस्ट करवाना जरूरी है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक सिर्फ 10 साल की उम्र तक ही बच्चों की आंखों का विकास होता है, ऐसे में यदि बच्चा माइनस विजन के साथ पढ़ता है, तो उसकी आंख का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है। अब इस संबंध में सीबीएसई ने पैरेंट्स को सजेशन दिया है कि वह प्राइमरी सेक्शन में बच्चोें का एडमिशन कराने से पहले उनके आंखों की जांच अवश्य करा लें। इससे उनको पता होगा कि बच्चों की आंख संबंधी कोई परेशानी तो नहीं है।
बच्चों का विजन टेस्ट भी जरूरी
बच्चों को कई बार विजन की प्रॉब्लम जेनेटिकली होती है। यदि पैरेंट्स में दोनों का निगेटिव विजन है, तो बच्चे में मायोपिया निगेटिव विजन की प्रॉब्लम जन्म से हाेने के चांसेस बढ़ जाते हैं। इसलिए बच्चों का विजन टेस्ट समय पर करवाना चाहिए। जिससे इसका समय पर उपचार हो सके।
3 साल तक नियमित कराएं आंखों की जांच
3 साल की उम्र से ही बच्चों की आंखों की नियमित जांच करवाना चाहिए। बच्चों में आंख संबंधी परेशानी का पता करना आसान है। इसमें दूर की वस्तुओं को देखने या लिखा हुआ पढ़ने में परेशानी होती है, तो अभिभावक आंख संबंधी समस्या का आसानी से पता कर सकते हैं।
बच्चों को लिखा हुआ पढ़ने में होती है परेशानी
10% बच्चों को आई-टीमिंग की प्रॉब्लम होती है, जिससे उन्हें धुंधला दिखाई देता है।
20% बच्चों को लिखा हुआ पढ़ने में विजन कमजोर होने के कारण परेशानी होती है।
60% बच्चों में लर्निंग डिसेबिलिटी उनकी आंखों के कमजोर होने के कारण होती है।