आधारहीन व झूठी जनहित याचिकाएं तेजी से न्याय प्रणाली का अभिशाप बन रहीं, तीन लाख रुपए का जुर्माना 

हाईकोर्ट आधारहीन व झूठी जनहित याचिकाएं तेजी से न्याय प्रणाली का अभिशाप बन रहीं, तीन लाख रुपए का जुर्माना 

Bhaskar Hindi
Update: 2023-01-28 13:18 GMT
आधारहीन व झूठी जनहित याचिकाएं तेजी से न्याय प्रणाली का अभिशाप बन रहीं, तीन लाख रुपए का जुर्माना 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कोर्ट में दायर की जानेवाली आधाहीन व झूठी जनहित याचिकाओं की बढती संख्या पर खेद व्यक्त किया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट की उस भावना का भी जिक्र किया है जिसमें कहा गया है आधारहीन व झूठी जनहित याचिकाएं तेजी से न्याय प्रणाली का अभिशाप बनती जा रही है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की इस भावना को पूरी तरह से सही माना है।  न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति एसजी दिगे की खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट में दायर की जानेवाली आधारहीन व झूठी याचिकाएं अदालती प्रक्रिया के घोर दुरुपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके साथ ही खंडपीठ ने मुंबई के उपनगर इलाके में एक झोपडपट्टी पुनर्वास प्रोजेक्ट को लेकर जनहित याचिका दायर करनेवाले याचिकाकर्ता अभिलाष रेड्डी पर तीन लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई से पहले याचिकाकर्ता को कोर्ट में तीन लाख रुपए जमा करने को कहा था। कोर्ट के निर्देश के तहत याचिकाकर्ता ने कोर्ट में इस राशि को जमा भी किया था।  खंडपीठ  ने अब इस राशि को जुर्माने में परिवर्तित कर इस रकम को कैंसर ग्रस्त बच्चों का इलाज करनेवाले सेंट जूडे इंडिया चाइल्ड केयर सेंटर नामक संस्थान को देने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि हम इस मामले से ऐसे लोगों को कड़ा संदेश देना चाहते है जो आधारहीन याचिका दायर कर अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग करते है। 

खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई के बाद रेड्डी की याचिका को आधारहीन पाया। खंडपीठ ने पाया कि प्रोजेक्ट के लभार्थियों की ओर से प्रोजेक्ट को लेकर कोई शिकायत नहीं की गई है। जो कि याचिकाकर्ता की प्रामणिकता व भूमिका(लोकस) को लेकर सवाल पैदा करते है। याचिका में झोपड़पट्टी पुनर्वास प्रोजेक्ट (एसआरए) में अनियमितता व नियमों का उल्लंघन होने का दावा किया गया था। किंतु खंडपीठ ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता ने खुद को आरटीआई कार्यकर्ता बताया है लेकिन उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है जिसका याचिका में खुलासा भी नहीं किया गया है। इसके मद्देनजर मौजूदा याचिका की जनहित याचिका के रुप में सुनवाई नहीं की जा सकती है। इस तरह से खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। 

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