बाबा की संगीत परी: मैहर के शास्त्रीय संगीत घराने से था लता दीदी का गहरा नाता
सतना बाबा की संगीत परी: मैहर के शास्त्रीय संगीत घराने से था लता दीदी का गहरा नाता
डिजिटल डेस्क सतना। मैहर के शास्त्रीय संगीत घराने से भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर का गहरा नाता था। पद्म विभूषण उस्ताद अलाउद्दीन खां ने वर्ष १९१८ में आदि शक्ति मां शारदा की नगरी मैहर में भारतीय शास्त्रीय संगीत घराने की स्थापना की थी। कहते हैं, प्यार से बाबा- लता को संगीत की परी कहा करते थे। तकरीबन तीस के दशक तक अलाउद्दीन देश में भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्थापित हस्ताक्षर हो चुके थे। यह वही दौर था, जब मैहर घराने से ऐसे अनगिनत शिष्यों की फेहरिस्त जुड़ी , जो कालांतर में मुंबई के बॉलीवुड में संगीत निर्देशन का पर्याय बन गई।
सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा:----
बाबा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित जीवन मूल्यों का गहरे से अध्ययन कर रहे मैहर के शिक्षाविद् डा. अतुल गर्ग कहते हैं, यकीनन यह कह पाना कठिन है कि सरस्वती सुता लता दीदी का मैहर आना जाना था, या नहीं ? मगर, कुछ मौखिक संस्मरण बताते हैं कि १९५० से ६० के बीच लता पहली बार किशोरावस्था में एचएमवी की टीम के साथ उस्ताद अलाउद्दीन से मिलने मैहर आई थीं। असल में एचएमवी तब मो.इकबाल की राष्ट्र भक्ति पर आधारित गजल... सारे,जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा...के संगीत निर्देशन के लिए बाबा के साथ आर्थिक अनुबंध करना चाहती थी। लेकिन , बाबा ऐसे किसी वित्तीय एग्रीमेंट के लिए राजी नहीं हुए।
पं.रविशंकर का संगीत और लता के स्वर :-
कहते हैं, बाबा के दामाद और सितारवादक पं.रविशंकर की फिल्मों के संगीत निर्देशन में गहरी रुचि थी। मुंबई के संगीत निर्देशक अतुल मर्चेंट जटायु और ब्रांड एंबेस्डर (डांस) एवं नामवर कथक नृत्यांगना वी अनुराधा सिंह के हवाले से बकौल डा. गर्ग, बाबा की पहल पर पं.रविशंकर ने जहां...सारे जहां से अच्छा...की कम्पोजिंग की वहीं , लता दीदी ने अमर स्वर दिए। वर्ष १९०५ में लिखी इकबाल की इस गजल की यही धुन वर्ष १९५६ से भारतीय सेना की आफीशियल धुन भी है। पहले पं.रविशंकर और फिर , लता मंगेशकर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किए गए।
गोदान और अनुराधा से आंधियां तक :-----
गोदान और अनुराधा फिल्मों को जहां पं.रविशंकर ने कम्पोज किया, वहीं बोल लता के थे। सत्यजीत रे की जिस मशहूर बांग्ला फिल्म पाथेर पंचाली को ऑस्कर अवार्ड
से नवाजा गया उस फिल्म के संगीत निर्देशक भी उस्ताद अलाउद्दीन की पद्मभूषण बेटी अन्नपूर्णा देवी के शिष्य पं.रवि शंकर ही थे। उन्होंने अन्नपूर्णा देवी से सुरबहार और सितार की दीक्षा ली थी। इसी क्रम में बाबा के बेटे सुर सम्राट एवं पद्म विभूषण अली अकबर खां भी किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। इन्होंने जिस हिंदी फीचर फिल्म आंधियां को संगीत दिया था, उसी आंधियां को लता और आशा ने मिलकर स्वर दिए थे।
सरस्वती से लक्ष्मी का नाता :-----
+ तिमिर वरन से मलिक तक
शिक्षाविद् डा. अतुल गर्ग के मुताबिक वर्ष १९३० से वर्ष १९६० के दौरान मैहर वस्तुत: भारतीय शास्त्रीय संगीत का गढ़ रहा। मां सरस्वती की धर्मनगरी मैहर से धन की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी के नगर मुंबई का जुड़ाव शिष्य परंपरा की बेजोड़ कड़ी का परिणाम था। पहली हिंदी फीचर फिल्म देवदास के संगीत निर्देशक तिमिर वरन ने जहां मैहर आकर उस्ताद अलाउद्दीन से सरोद की दीक्षा ली। वहीं संगीत निर्देशक श्रीराम गांगुली को भी बाबा से सरोद का सबक मैहर में ही मिला। एसडी वर्मन बाबा के पास बांसुरी सीखने आए मगर बाबा ने विधा बदल दी। उस्ताद ने उन्हें अपने संगीत निर्देशक शिष्य केसी डे (मन्ना डे के चाचा) के पास भेजा और यूं सचिन देव वर्मन मशहूर संगीत निर्देशक बन कर उभरे।
गुरु पुत्र और गुरु शिष्य :------
यह भी एक संयोग बना कि बाबा के शिष्य एसडी वर्मन के बेटे राहुल देव वर्मन ने बाबा के बेटे अली अकबर से सरोद की शिक्षा ली। उल्लेखनीय है, फिल्म अभिनेता गुरुदत्त की मुलाकात अली अकबर से ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम के दौरान हुई थी। अली अकबर से गुरुदत्त ने सरोद सीखा। इतना ही नहीं म्यूजिक डायरेक्टर रोशन लाल शर्मा ने मैहर आकर बाबा से दिलरुबा सीखी। वह फिल्म निर्देशक राकेश रोशन के पिता और अभिनेता रितिक रोशन के बाबा थे। संगीत निर्देशक अनु मलिक के म्यूजिक डायरेक्टर पिता सरदार मलिक हों या फिर म्यूजिक डायरेक्टर जयदेव इन्होंने भी बाबा से सरोद का सबक लिया। म्यूजिक डायरेक्टर पन्ना लाल घोष ने जहां बाबा से बांसुरी की दीक्षा ली, वहीं संगीत निर्देशक हरि प्रसाद चौरसिया ने गुरु मां अन्नपूर्णा देवी से बांसुरी सीखी थी।