शरीर में खाद्य पदार्थों से पहुंच रहा एंटीबायोटिक, कम हो रही रोग प्रतिरोधक क्षमता

शरीर में खाद्य पदार्थों से पहुंच रहा एंटीबायोटिक, कम हो रही रोग प्रतिरोधक क्षमता

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-01 10:11 GMT
शरीर में खाद्य पदार्थों से पहुंच रहा एंटीबायोटिक, कम हो रही रोग प्रतिरोधक क्षमता

डिजिटल डेस्क, नागपुर। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में एंटीबायोटिक कोलिस्टीन का पोल्ट्री व अक्वा फार्मिंग में फीडिंग सप्लीमेंट के रूप में उत्पादन व ब्रिकी पर रोक लगा दी है। यह फैसला बड़े स्तर पर एंटीबायोटिक का पशुओं व मछलियों के लिए इस्तेमाल और उससे मानव स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों के मद्देनजर लिया गया है। हालांकि अब भी मानव शरीर में दवाइयों से कहीं ज्यादा एंटीबायोटिक मीट, मछली, दूध, प्रिजर्व फूड और फल-सब्जियों के रूप में पहुंच रहा है। डब्ल्यूएचओ के टेक्निकल ऑफिसर डॉ. अनुज शर्मा कह चुके हैं कि एंटीबायोटिक का 70 प्रतिशत इस्तेमाल जानवरों के खाने और कृषि में हो रहा है जो वेज-नॉनवेज के रूप में हमारे शरीर में पहुंच रहा है। बिना जरूरत के शरीर में लो डोज में पहुंच रहे इस एंटीबायोटिक को डॉक्टर धीमा जहर कहते हैं। इससे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया में इसके खिलाफ रेसिस्टेंस डेवलप हो जाती है। ऐसे लोगों पर फिर एंटीबायोटिक दवाइयां असर नहीं करती हैं।

ऐसे पहुंच रहा शरीर में

विशेषज्ञों के अनुसार मुर्गी ओर मछलियों में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जाता है। इनके लिए ऐसा हाई एंटीबायोटिक इस्तेमाल किया जाता है, जो डॉक्टर केवल अति गंभीर मरीजों के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। मछलियों को स्वस्थ रखने के लिए लोग तालाबों में भारी मात्रा में एंटीबायोटिक डाल देते हैं। यह पानी बाद में फसल और सब्जियाें में भी इस्तेमाल होता है। इस प्रकार अनाज और सब्जियों में भी एंटीबायोटिक पहुंच जाता है। इसी प्रकार गाय-भैंस आदि के भोजन में भी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हो रहा है और यह दूध के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंच रहा है। यहां तक कि सभी प्रकार के पैक्ड फूड को प्रिजर्व रखने के लिए इसमें एंटीबायोटिक का इस्तेमाल होता है। यही नहीं पैकेट वाले दूध में भी एंटीबायोटिक मिलाया जाता है।

सर्जरी, कैंसर के इलाज और ऑर्गन ट्रांसप्लांट में बाधक 

एंटीबायोटिक का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल ऑर्गन ट्रांसप्लांट, किसी भी बड़ी सर्जरी और कैंसर जैसी बीमारियों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। ऐसे मरीजों के इलाज और सर्जरी में बहुत मुश्किलें आती हैं जो किसी भी रूप में एंटीबायोटिक का लंबे समय से इस्तेमाल कर रहे हैं। यही नहीं एंटीबायोटिक के शरीर में पहुंचने से सामान्य बीमारी के ठीक होने में ज्यादा वक्त और खर्च लगता है। - डॉ. अनुज शर्मा, डब्ल्यूएचओ के कंसल्टेंट

जरूरत पड़ी तो नहीं करेगा काम

शरीर में ज्यादा एंटीबायोटिक का हर अंग पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जब शरीर को किसी बीमारी से लड़ने लिए एंटीबायोटिक की जरूरत होती है, तो उसका डोज काम नहीं करता, क्योंकि शरीर में हमेशा रहने के कारण उसके प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है। आजकल पशु चिकित्सा में भी काफी अधिक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हो रहा है।- डॉ. अविनाश गावंडे

कुछ वर्ष बाद छोटी-सी बीमारी भी बन सकती है घातक

पोल्ट्री और अक्वा फार्मिंग में बड़े स्तर पर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हो रहा है। कुछ वर्षों में मांसाहारी लोगों में एंटीबायोटिक का स्तर इतना अधिक होगा कि उन पर इसका असर समाप्त हो जाएगा और किसी भी बीमारी का उपचार कठिन हो जाएगा। ऐसे में छोटी-माेटी बीमारियों से भी मौत का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
- अविनाश काकडे, संयोजक, विष मुक्त अन्न रोग मुक्त शरीर 

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