वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से लैस होंगी सभी अदालतें
वीडियो कॉन्फ्रेसिंग से लैस होंगी सभी अदालतें
डिजिटल डेस्क,मुंबई। राज्य की सभी अदालतें अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से लैस होंगी। इसके लिए बॉम्बे हाइकोर्ट ने रूप-रेखा पेश करने का निर्देश दिया है। राज्य में अभी भी 187 अदालतों में कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा न होने से खिन्न न्यायमूर्ति आरएम सावंत व न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने जेल महानरीक्षक अथवा उप जेल महानिरीक्षक को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। हलफनामे में यह साफ करने के लिए कहा गया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को लेकर निविदा प्रक्रिया की क्या स्थिति है।
इससे पहले सरकारी वकील मानकुवर देशमुख ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा को लेकर अदालत में एक चार्ट पेश किया गया। खंडपीठ ने पाया कि कई कोर्ट में तकनीकी खराबी के कारण कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा सही नहीं है। इसके अलावा कई अदालतों में तो यह सुविधा ही उपलब्ध नहीं है। सरकारी वकील ने कहा कि सरकार जल्द ही उन सभी अदालतों में सुविधा उपलब्ध कराएगी। यह काम अक्टूबर 2017 तक पूरा हो जाएगा। इस पर खंडपीठ ने कहा कि सरकार हमारे सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग लगाने का रोडमैप पेश करें।
खंडपीठ ने कहा कि अगर इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के रखरखाव को लेकर सरकार गंभीर नहीं है तो ऐसी सुविधा बनाने का क्या फायदा? खंडपीठ ने कहा कि इससे आरोपियों को अदालत में पेश करने में आसानी होती है। क्योंकि हमने कई मामलों में देखा है कि पुलिस बल की कमी के चलते आरोपी को कोर्ट में नहीं पेश किया जाता। कुछ मामलों में तो आरोपी 6 साल तक जेल में रहते हैं और उन पर आरोप तय नहीं हो पाते। ऐसे में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग काफी कारगर साबित हो सकती है बशर्ते उसके रखरखाव पर भी ठीक से ध्यान दिया जाए।
कैदी का पत्र बना जनहित याचिका
एक कैदी ने अपनी अदालत में पेशी न होने की शिकायत को लेकर हाइकोर्ट को एक पत्र लिखा था। इस पत्र को अदालत ने खुद जनहित याचिका में परिवर्तित किया है। मामले की पैरवी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन प्रधान को न्यायमित्र के रूप में नियुक्त किया है।
ई-मेल से भेजें समन-वारंट
हाइकोर्ट न्यायमूर्ति आरएम सावंत व न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने समन व वारंट को तामील करने के लिए सरकार को ई-मेल का सहारा लेने का सुझाव दिया। इस दौरान सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे ने कहा कि समन व वारंट तामिल कराने के लिए पुलिस स्टेशन में अलग प्रकोष्ठ बनाया गया है। मामले से जुड़े अधिकारी अदालत में मौजूद नहीं हैं, इसलिए मामले की सुनवाई स्थगित की जाए। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।