मौत के बाद एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने केंसर का हवाला देकर कर दिया नो क्लेम
बीमा अधिकारियों द्वारा किया जा रहा धोखा मौत के बाद एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने केंसर का हवाला देकर कर दिया नो क्लेम
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। पॉलिसी रिन्यु कराने के लिए प्रतिवर्ष बैंक से प्रीमियम काटा जाता है और जब पॉलिसी धारक के साथ अनहोनी हो जाती है तो बीमा कंपनी अपने हाथ खड़े कर लेती है। बीमा अधिकारियों द्वारा पुरानी बीमारी का हवाला दिया जाता है। पीड़ितों का आरोप है कि बीमा कंपनियाँ मौत के बाद भी क्लेम नहीं देती हैं। नामिनी को यह कहा जाने लगता है कि आपके पॉलिसी होल्डर ने बीमारी छुपाई थी और यह हमारे नियम में नहीं आता है। बीमारी कब हो जाए और किस रूप में रहे यह कोई नहीं जानता। उसके बाद भी बीमा कंपनियाँ नियमों का हवाला देते हुए गोलमाल करते हुए आम लोगों के विश्वास को तोड़ने में पीछे नहीं हैं। परेशान होकर आम उपभोक्ता बीमा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की माँग करते हुए कंज्यूमर कोर्ट के साथ विधिक सेवा प्राधिकरण में भी शिकायत देते हुए न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
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कोई परीक्षण नहीं कराया और उसके बाद भी कह रहे पुरानी बीमारी
छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव निवासी सुमरन यदुवंशी ने शिकायत में बताया कि बेटी नीतू यदुवंशी ने एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से पॉलिसी ली थी। पॉलिसी क्रमांक 76001000438 में यह नियम था कि अगर हादसे में कोई अंग खराब होता है तो क्लेम दिया जाएगा और मृत्यु होने पर नामिनी को भुगतान प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होगा। नीतू की अचानक तबियत खराब हुई और चैक कराया तो खुलासा हुआ कि केंसर हो गया है। कैंसर का इलाज नीतू द्वारा कराया गया पर 1 नवंबर 2020 को नीतू की मृत्यु हो गई। मृत्यु उपरांत नामिनी सुमरन ने बीमा कंपनी में सारे दस्तावेज लगाते हुए क्लेम किया तो उसमें अनेक प्रकार की जानकारी माँगी गई जो उसे नामिनी द्वारा दी गई पर बाद में अचानक यह कहते हुए क्लेम रिजेक्ट कर दिया गया की केंसर की बीमारी होने पर हम क्लेम नहीं देते हैं। वहीं नामिनी का आरोप है कि केंसर बेटी को पहले नहीं था और बीमा कंपनी ने किसी तरह का परीक्षण नहीं कराया, उसके बाद भी नो क्लेम कर बीमा क्लेम डिपार्टमेंट के अधिकारियों के द्वारा गोलमाल किया गया है। वहीं एसबीआई लाइफ कंपनी के प्रतिनिधि से संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि केंसर की बीमारी छुपाई थी, इसलिए हमारी कंपनी क्लेम नहीं दे रही है। वहीं प्रतिनिधि से पूछा गया कि क्या पॉलिसी देते वक्त परीक्षण कराया गया था तो उनके पास किसी तरह का जवाब नहीं था।