राज्य की जेलों में 73 फीसदी विचाराधीन कैदी, छोटे-मोटे मामलों में वर्षों से बंद
राज्य की जेलों में 73 फीसदी विचाराधीन कैदी, छोटे-मोटे मामलों में वर्षों से बंद
डिजिटल डेस्क, मुंबई। विजय सिंह ‘कौशिक’। जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चिंता जताई है। पर राज्य सरकार के अधिकारी इस समस्या के लिए केवल पुलिस विभाग को जिम्मेदारा मानने को तैयार नहीं। महाराष्ट्र की जेलों में बंद 73 फीसदी विचाराधीन कैदी हैं जबकि सजायाफ्ता कैदियों की संख्या सिर्फ 27 प्रतिशत है। विचाराधीन कैदियों में भी उन की संख्या अधिक है, जो छोटे-मोटे मामले में जेल भेजे गए हैं और उनकी जमानत पर जल्द सुनवाई नहीं हो पाती। राज्य का जेल महकमा अब जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए कई तरह के कदम उठाने जा रहा है।
जेल विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘दैनिक भास्कर’ को बताया कि जेलों में बंद ऐसे बहुत से कैदी हैं, जिन्हें आसानी से जमानत मिल सकती है। ये उन मामलों में जेल भेजे गए हैं, जिनमें अधिकतम सजा पांच से सात साल है। जबकि वे कई वर्षों से जेल में पड़े हुए हैं। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दुनिया के प्रगतिशील देशों की जेलों में 70 फीसदी सजायाफ्ता और सिर्फ 30 प्रतिशत विचाराधीन कैदी होते हैं। जबकि यहां स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। बीते 28 फरवरी तक राज्य की जेलों में बंद कैदियों में सजायाफ्ता कैदियों की सख्या 8746 और 23705 विचाराधीन कैदी थे।
जेलों में भीड़ कम करने पुलिस विभाग देगा ध्यान
इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने एक समिति भी बनाई है। फिलहाल समिति की सिफारिशों का इंतजार है। राज्य के पुलिस महानिदेशक (जेल) बिपिन बिहारी ने बताया कि हमनें अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि तीन से सात साल की सजा वाले मामलों में जेल में रखे गए कैदियों की जमानत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाए। सामाजिक संस्था समर्थन की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल राज्य की जेलों में 5 हजार 777 अतिरिक्त कैदी हैं।
कैदियों के प्रकार पुरुष स्त्री कुल प्रतिशत
सजायाफ्ता 8350 396 8746 27
विचाराधीन 22636 1061 23705 73
कुल 30,986 1457 32451 100
जेल क्षमता जेलों में बंद कैदी
मुंबई 804 2702
नागपुर 1840 1968
औरंगाबाद 579 1242
अमरावती 973 1112
नाशिक 3178 2739
येरवडा पुणे 2449 4038
बिपिन बिहारी पुलिस महानिदेशक (जेल) के मुताबिक जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां सजायाफ्ता कैदियों की बजाय विचाराधीन कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा है। जबकि जेल सजायाफ्ता कैदियों के सुधार के लिए करेक्शन सेंटर जैसे होते हैं। अब इस स्थिति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं।