बॉम्बे हाईकोर्ट: नासिक पुलिस आयुक्त द्वारा एक शख्स को एमपीडीए के तहत हिरासत में लेने का आदेश रद्द

  • अदालत ने व्यक्ति को रिहा करने का दिया आदेश
  • नासिक पुलिस आयुक्त द्वारा हिरासत में लेने का आदेश था

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-30 15:49 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने नासिक पुलिस आयुक्त द्वारा एक व्यक्ति को खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम (एमपीडीए)अधिनियम के तहत हिरासत में लेने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने उस व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया है। पुलिस ने एमपीडीए के तहत व्यक्ति को एक वर्ष के लिए हिरासत में लिया था। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष यश राजेंद्र शिंदे की ओर से वकील अक्षय बांकापुर की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील अक्षय बांकापुर ने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी है कि हिरासत के आदेश में पिछले आपराधिक इतिहास का उल्लेख भी किया जा सकता है, जब उनका किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने की तत्काल आवश्यकता से सीधा संबंध हो। जबकि पुलिस ने अपनी राय बनाते समय निश्चित रूप से अतीत के अपराध पर भरोसा किया है। पुलिस का आरोप है कि याचिकाकर्ता मुंबई-नाका, सरकारवाड़ा, गंगापुर और पंचवटी पुलिस स्टेशन क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न कर रहा है। वह लगातार आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है। इसलिए यह साबित होता है कि वह एमपीडीए अधिनियम की धारा 2(बी-1) के तहत खतरनाक व्यक्ति है। याचिकाकर्ता अपराधी है। इसलिए उसे आगे कोई अपराध करने से रोकने के लिए उस पर प्रतिबंधक कार्रवाई करना जरूरी है।

याचिकाकर्ता ने पुलिस आयुक्त के एक साल के लिए हिरासत में लेने के विवादित आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया। पुलिस ने याचिकाकर्ता को एमपीडीए अधिनियम की धारा 3(2) के तहत 6 दिसंबर 2023 को हिरासत का आदेश जारी किया है। तब से वह पुलिस हिरासत में है। याचिकाकर्ता पहले से ही कुछ अन्य अपराधों के लिए हिरासत में था, इसलिए उसे नासिक रोड सेंट्रल जेल के माध्यम से हिरासत के आदेश की प्रति दी गई। हिरासत के उस आदेश को मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा गया था और 14 दिसंबर 2023 को इसे मंजूरी दे दी गई।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ नासिक पुलिस आयुक्त के पारित हिरासत आदेश को रद्द कर किया जाता है। वह तत्काल रिहाई का हकदार है। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता पहले से ही किसी अन्य अपराध में जेल में था, हिरासत में लेने वाले अधिकारी को एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करना चाहिए था। पुलिस को लगा कि याचिकाकर्ता को जमानत दिए जाने की संभावना है और रिहा होने के बाद उससे अपराध करने, शांति भंग करने और सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की संभावना है। हालांकि हिरासत में लेने वाले अधिकारी ने कहा है कि उन्होंने केवल याचिकाकर्ता के खिलाफ अतीत में दर्ज अपराधों का उल्लेख किया है और उन पर भरोसा नहीं किया है।

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