अतीत के पन्नों से: समाजिक विचारकों को येचुरी की अध्ययनशीलता और बेबाकी हमेशा करती रही प्रभावित

  • विद्यापीठ का कार्यक्रम रद्द होने के बाद भी पहुंचे थे नागपुर
  • येचुरी की अध्ययनशीलता और बेबाकी की बात

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-12 14:57 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी राजनीति के उन दिग्गजों में शामिल थे, जो दल व विचार से अलग अन्य दलों के व्यक्तियों से भी अच्छे संबंध रखते हैं। उनकी अध्ययनशीलता व बेबाकी शहर के विविध समाज विचारकों को प्रभावित करती रही। उनके निधन पर स्मृति साझा करते हुए उनके व्यक्तित्व की सराहना की जा रही है।


डंकल प्रस्ताव पर व्याख्यान ने दी पहचान

येचुरी भले ही भारतीय राजनीति में काफी पहले से स्थापित हुए लेकिन शहर में उनकी पहचान डंकल प्रस्ताव पर व्याख्यान से हुई। 1991 में टेरिफ और व्यापार समझौता अर्थात गेट करार पर चर्चा चल रही थी। उसमें डंकल प्रस्ताव का समावेश किया गया। डंकल एक मसौदा था जिसे लेकर राजनीति में मतभेद था। 1993 में येचुरी ने नागपुर में डंकल प्रस्ताव पर विस्तार से व्याख्यान दिया। कहा जा रहा है कि उस व्याख्यान से शहर के कई लोगों ने डंकल प्रस्ताव को समझा। राजनीतिक व आर्थिक विषयों से संबंधित कार्यक्रमों के सिलसिले में येचुरी नागपुर आते रहे। मार्च 2022 में माकपा के प्रदेश स्तरीय अधिवेशन में भी वे शामिल हुए थे।

कार्यक्रम रद्द होने के बाद भी आए

सात वर्ष पहले मार्च 2017 में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विद्यापीठ ने सीताराम येचुरी को एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था। विद्यापीठ के डॉ.बाबासाहब आंबेडकर विचार स्नात्तकोत्तर विभाग ने 18 व 19 मार्च 2017 को कार्यक्रम की तैयारी की थी। व्याख्यान का विषय था-लोकशाही क्षरण, आवाहन व उपाय। येचुरी के व्याख्यान कार्यक्रम का कुछ संगठनों ने विरोध किया। तत्कालीन कुलगुरु एसएम काणे ने अचानक कार्यक्रम स्थगित कर दिया। तब आंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं व अन्य विचारकों से संपर्क कर येचुरी तय तारीख को नागपुर में व्याख्यान कार्यक्रम में शामिल हुए। व्याख्यान का आयोजन आंबेडकर महाविद्यालय में किया गया।

येचुरी ने सामाजिक-आर्थिक विषमता का उल्लेख करते हुए केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की थी। माकपा के शहर अध्यक्ष अरुण लाटकर कहते हैं- येचुरी के व्यक्तित्व में उनकी सादगी भी प्रभावित रही है। राजनीति की बड़ी शख्सियत होने के बाद भी वे सभी कार्यकर्ताओं से कार्यकर्ता की भूमिका में ही मिलते रहे। कम्युनिस्ट नेता अरुण बनकर, प्रदेश स्तर पर आंदोलनों में येचुरी के साथ रहे हैं। वे कहते हैं-येचुरी का योगदान भारतीय राजनीति का इतिहास नहीं भुला पाएगा।

भारतीय वामपंथी राजनीति का एक प्रमुख चेहरा थे येचुरी

72 साल की उम्र में येचुरी ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में गुरूवार को अंतिम सांस ली। वे फेफड़े के संक्रमण के उपचार के लिए 19 अगस्त से एम्स में भर्ती थे। येचुरी के परिवार ने शिक्षण रिसर्च के लिए उनके पार्थिव शरीर को एम्स, नई दिल्ली को दान करने का निर्णय लिया है। सीताराम येचुरी भारतीय वामपंथी राजनीति का एक प्रमुख चेहरा थे। वे जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। आपातकाल के दौरान जेल जाकर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। यूपीए सरकार में वामपंथी दलों को शामिल होने के लिए राजी करने का श्रेय येचुरी को ही जाता है। अप्रैल 2015 में माकपा का महासचिव पद ग्रहण करने वाले येचुरी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने येचुरी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने कहा, येचुरी के निधन पर दुख हुआ। वे वामपंथ के प्रणेता थे। वे राजनीतिक स्पेक्ट्रम से जुड़ने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने एक प्रभावी सांसद के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों साथ है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी येचुरी के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने कहा, येचुरी जी का निधन राजनीतिक क्षेत्र के लिए क्षति है। मैं उनके परिवार के सदस्यों और दोस्तों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं। ईश्वर उन्हें इस कठिन समय को सहने की शक्ति दें। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सीताराम येचुरी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट लिखा, “येचुरी देश की गहरी समझ रखने वाले और भारत के विचार के रक्षक थे। सीताराम येचुरी जी एक मित्र थे। मैं हमारे बीच होने वाली लंबी चर्चाओं को याद करूंगा। दुख की इस घड़ी में उनके परिवार, दोस्तों और समर्थकों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना है”

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