शीतकालीन अधिवेशन: विदर्भ के मुद्दों पर कितनी हो पाएगी चर्चा

कामकाज को लेकर भी उठ रहे सवाल

Bhaskar Hindi
Update: 2023-11-30 06:10 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विधानमंडल का शीतकालीन अधिवेशन 7 से 20 दिसंबर तक होगा।  मुंबई में कामकाज सलाहकार समिति ने निर्णय लिया। पहले यह अधिवेशन 7 से 22 दिसंबर तक कराने की घोषणा की गई थी। इस बीच यह भी संकेत दिए जा रहे थे कि अधिवेशन की शुरुआत में विलंब हो सकता है। अब भले ही अधिवेशन के कार्यक्रम की घोषणा की जा चुकी है, लेकिन सवाल बना हुआ है कि इतने कम समय में विदर्भ के मुद्दों पर कितनी चर्चा हो पाएगी। विपक्ष अधिवेशन की अवधि बढ़ाने की मांग करता रह गया।

अवकाश और हंगामा : कार्यक्रम सूची को देखा जाए तो यह सत्र 10 दिन का ही होगा। उसमें में कुछ समय हंगामे में बीतने के आसार हैं। 7 दिसंबर को अध्यादेश सभा पटल पर रखे जाएंगे। अब तक का अनुभव रहा है कि पहले दिन का कामकाज शोकसभा के बाद समाप्त हो जाता है। दूसरे दिन शासकीय व अशासकीय कामकाज होगा। ओबीसी व मराठा आरक्षण को लेकर हंगामा होने के साफ आसार हैं। यह ऐसा मुद्दा बन गया है, जिस पर विपक्ष ही नहीं सत्तापक्ष भी अपनी बात रखने के लिए आग्रही रहेगा। दो सप्ताह में शनिवार व रविवार का 4 दिन अवकाश रहेगा। सत्र की सही शुरुआत दूसरे सप्ताह में पूरक मांगों पर चर्चा व मतदान के साथ हो सकती है।

खास मुद्दे :  सत्र में आरक्षण का मुद्दा ही प्रमुखता से छाया रहेगा। इसके अलावा पुणे का ड्रग्स माफिया पाटील प्रकरण, ठेका भर्ती, राज्य में सूखे की स्थिति, पानी की समस्या, कानून व्यवस्था, असमय बरसात से नुकसान का विषय प्रमुखता से चर्चा में आएगा। जानकारों का यह भी मानना है कि विपक्ष में आक्रामक रहने वाले अधिकतर विधायक अब सत्ता पक्ष में हैं। ऐसे में विपक्ष पर सत्ता पक्ष अासानी से दबाव लाने का प्रयास करेगा। विधायकों की सदस्यता के विषय को लेकर भी आक्रामक अंदाज में चर्चा हो सकती है।

इसलिए थी अवधि बढ़ाने की मांग : विपक्ष के नेताओं का कहना है कि तय कार्यक्रम के अनुसार इस सत्र में विदर्भ को न्याय नहीं मिल पाएगा। नागपुर करार के अनुसार लक्ष्य रखा जाता है कि इस सत्र के माध्यम से विदर्भ की समस्याओं पर अधिक चर्चा हो। पहले ही कहा गया था कि शाेकसभा, आरक्षण पर हंगामा व दो दिन के अवकाश के कारण यह सत्र सही मायने में 13 दिसंबर से आरंभ होगा। चर्चा के लिए केवल 8 दिन शेष रहेंगे। उसमें भी दो दिन शनिवार व रविवार का अवकाश रहेगा। इतने कम समय में विविध विषयों पर कैसे चर्चा हो पाएगी। वैसे भी नागपुर में सत्र को लेकर धारणा बनने लगी है कि यहां केवल औपचारिकता निभाई जाती है। सत्ता में भले ही कोई भी दल हो, विदर्भ की उपेक्षा होती रही है। वैसे भी कोरोना संक्रमण काल में दो वर्ष तक नागपुर में शीतसत्र नहीं हो पाया था। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व की सरकार के समय यहां मानसून सत्र आयोजित किया गया था, लेकिन विधानभवन में पानी घुसने की घटना से मानों सरकार चौंक गई। नागपुर में मानसून सत्र कराने में सरकार दिक्कत व्यक्त करने लगी।

सरकार की नीति का निषेध : नागपुर करार का पालन नहीं किया जा रहा है। 10 दिन में विदर्भ के विषयों पर पर्याप्त चर्चा नहीं हो पाएगी। सरकार की नीति का निषेध करता हूं। विदर्भ में किसान संकट में हैं। अतिवृष्टि व असमय बारिश से हर क्षेत्र के नागरिक प्रभावित हुए हैं। विदर्भ की समस्याओं के लिहाज से यह सत्र कम से कम 3 सप्ताह को होना था। -अनिल देशमुख, वरिष्ठ नेता, राकांपा (शरद पवार गुट)  फडणवीस-मुनगंटीवार वादे भूले

उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व मंत्री सुधीर मुनगंटीवार विदर्भ को दिए गए वादे भूल गए हैं। विपक्ष में रहते हुए ये नेता मांग करते रहे कि कम से कम एक माह तक नागपुर में शीतसत्र होना चाहिए। विदर्भ के पिछड़ेपन पर लुभावना भाषण देने वाले इन नेताओं को अब विदर्भ से कोई लेना-देना नहीं है। शीतसत्र की केवल औपचारिकता निभाने का प्रयास किया जा रहा है। -अतुल लोंढे, प्रवक्ता, कांग्रेस महाराष्ट्र

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