शीतसत्र का हाल: महाविकास आघाड़ी लगी रही मोर्चे में, महायुति ने निकाले जरूरी काम

विधानपरिषद में सुचारू रूप से हुआ काम

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-17 08:47 GMT

योगेश चिवंडे , नागपुर। नागपुर शीतसत्र का दूसरा सप्ताह कामकाज के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित हुआ। बिना किसी शोर-शराबे के विधानपरिषद में सुचारू रूप से काम हुआ। दूसरे सप्ताह के पहले और दूसरे दिन कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नागपुर में बड़े मोर्चे थे। नेता अपने-अपने मोर्चों को सफल बनाने में लगे रहे। शिवसेना का भी शनिवार को मुंबई में बड़ा मोर्चा था। ऐसे में शुक्रवार से ही उसके कोटे के सदस्य कम हो गए थे। जिसकारण अनेक बड़े नेता सदन से गायब ही रहे। सदन में कई बार कोरम का अभाव रहा, फिर भी सदन की कार्यवाही जारी रही। इसका पूरा फायदा महायुति सरकार ने उठाया। उसने अनेक महत्वपूर्ण विधेयक और अपने निर्णयों को पास कराया। महाराष्ट्र वस्तु व सेवा कर विधेयक 2023, चिट फंड विधेयक 2023, महाराष्ट्र कैसिनो विधेयक जैसे महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराया था। 55 हजार करोड़ रुपए की पूरक मांगे भी बिना किसी दबाव और विरोध के मंजूर हुई। पिछली बार विधानसभा से पारित होने के बाद विधानपरिषद में लोकायुक्त बिल आया था। विधानपरिषद से इसे वापस लौटाया गया था। लेकिन लोकायुक्त विधेयक इस बार एक झटके में पास हुआ।

उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कुछ मिनटों में लोकायुक्त की भूमिका और उसमें किए गए संशोधनों को समझाते हुए विपक्ष को इसके लिए तैयार किया। सबसे महत्वपूर्ण अनुसूचित जनजाति से संबंधित विषय रहा। अनुसूचित जनजाति से अन्य धर्मों में धर्मांतरण का मुद्दा पिछले कुछ दिनों से संघ और भाजपा के एजेंडे पर था। इसे लेकर संघ के समर्थित संगठनों के नेतृत्व में ईश्वर देशमुख महाविद्यालय में विशाल मोर्चा और सभा हुई थी। इस दौरान अनुसूचित जनजाति से धर्मांतरण करने वालों को डी-लिस्टिंग की मांग को आक्रामक तरीके से रखा था। आरोप है कि धर्मांतरण करने के बाद भी अनुसूचित जनजाति के नाम पर वे शैक्षणिक व नौकरी में आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। भाजपा नेता प्रवीण दरेकर के माध्यम से यह विषय विधानपरिषद में रखा गया। कौशल विकास मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा ने पहले तो अनुसूचित जनजाति से धर्मांतरण करने वालों का शैक्षणिक-नौकरी में आरक्षण रोकने की सहमति दिखाई। लेकिन जब जनता दल (यू) के सदस्य कपिल पाटील ने संविधान का हवाला देकर दलीलें दीं तो मंत्री महोदय दो कदम पीछे हटे। कपिल पाटील का कहना था कि संविधान ने उन्हें अनुसूचित जनजाति माना है। उन्हें अनुसूचित जनजाति के आधार पर आरक्षण मिला है, धर्म के नाम पर नहीं। ऐसे में धर्मांतरण के बाद जाति नहीं बदल जाती। वह उनका अधिकार है। एेसे में मंत्री महोदय ने विषय को सीमित करते हुए आरक्षण रोकने की बजाए जबरन धर्मांतरण करने के मामलों की शिकायत करने के लिए सेवानिवृत्त कुलगुरू की अध्यक्षता में समिति गठित करने का निर्णय लिया। विशेष यह कि कपिल पाटील इस विषय पर जिस तरह आक्रामक दिखे, धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाली कांग्रेस-राकांपा नहीं दिखी। अनेक मौके आए, जब विपक्ष मौन रहा या फिर औपचारिक विरोध जताकर शांत रहा। सत्तापक्ष इन अवसरों का फायदा उठाकर महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सफल हुआ।

 

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