कोर्ट-कचहरी: सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति को हाई कोर्ट से राहत, 142 अर्जित अवकाश का मिलेगा भुगतान
- पभोक्ता संरक्षण विभाग के सचिव की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा
- आपत्ति जताने पर नहीं मिली राहत
- हाईकोर्ट की शरण
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति अशोक भंगाले की याचिका मंजूर करते हुए राज्य सरकार को उन्हें 142 अर्जित अवकाश का भुगतान करने के आदेश दिए। कोर्ट के इस फैसले से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति को राहत मिली है।
यह है पूरा मामला : 2015 में उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के बाद, भंगाले ने 11 जनवरी 2016 से 18 सितंबर 2020 तक राज्य उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। 67 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद वे वहां से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें इस पूरे कार्यकाल के लिए 142 छुट्टियों के बदले नगद भुगतान का लाभ देना अावश्यक था। लेकिन उपभोक्ता संरक्षण विभाग के सचिव ने संबंधित नियम की गलत व्याख्या की और उन्हें केवल 20 जुलाई से 18 सितंबर 2020 तक के कार्यकाल के लिए अवकाश भुगतान किया। इस संबंध में 24 जनवरी 2022 को एक आदेश भी जारी किया गया था। भंगाले ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली। इसके चलते उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले पर न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष हुई सुनवाई हुई। कोर्ट ने सभी का पक्ष सुनते हुए सेवानिवृत्ति न्यायमूर्ति भंगाले को 142 अर्जित अवकाश का भुगतान करने और उस पर 6 प्रतिशत ब्याज देने के राज्य सरकार को आदेश दिए। भंगाले की ओर से एड. ए. आर. देशपांडे ने पैरवी की।
20 साल से मामला लंबित, तथ्य के प्रति खुद कोर्ट को सचेत रहना होगा : कोर्ट
नागपुर सुधार प्रन्यास के भूखंड पर अवैध कब्जे के मामले पर 2004 से बाॅम्बे हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ में जनहित याचिका लंबित है। 20 साल से यह मामला लंबित है, इस तथ्य के प्रति खुद कोर्ट को सचेत रहना जरूरी है, इसलिए कोर्ट ने मामले में 24 जनवरी को सुनवाई रखते हुए सभी पक्षों को अपना पक्ष रखने के लिए तैयार रहने के आदेश दिए हैं। विशेष यह है कि, इसी जनहित याचिका से जुड़े एक मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर भी आरोप लगा था।
यह है मामला : अनिल वडपल्लीवार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इस भू-खंड घोटाले का मुद्दा उठाया किया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि, नासुप्र के अधिकार क्षेत्र के तहत शहर में कई जमीनों को निजी व्यक्तियों और संगठनों के नाम पर अवैध रूप से वर्गीकृत किया गया है। इन जमीनों में हरपुर के 16 भूखंड भी शामिल हैं। 2021 में तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने इस भूखंड को नियमित करने का निर्णय लिया, तब यह मामला उच्च न्यायालय में लंबित था। मामले को लेकर हंगामे के बाद शिंदे ने दिसंबर 2022 में यह फैसला वापस ले लिया और बताया कि, नासुप्र की गलती के कारण उन्होंने यह फैसला लिया था।
हाई कोर्ट ने 24 को ही मामला निपटाने की मंशा जताई
मामले पर बुधवार को न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष सुनवाई हुई। इस समय न्यायालय मित्र एवं नासुप्र के वकील अनुपस्थित थे, इसलिए अगली तारिख की मांग की गयी। कोर्ट ने यह अनुरोध मंजूर किया, लेकिन 20 साल से मामला प्रलंबित है, इस तथ्य के प्रति सचेत रहना होगा, ऐसा निरीक्षण दिया है। साथ ही कोर्ट ने संबंधित पक्षों और विरोधी पक्षों को तैयार रहने के आदेश दिए। 24 जनवरी को इस मामले में सुनवाई रखी है। कोर्ट ने समय होने पर इस मामले को उसी दिन निपटाने की मंशा जताई है।